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अखिलेश की नजर उत्तर प्रदेश में लालू जैसी सियासी भूमिका पर? कांग्रेस के साथ गठबंधन की घोषणा के पीछे की क्या है रणनीति

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में एक बड़ा बयान देकर उत्तर प्रदेश की सियासत में राजनीतिक हलचल मचा दी है। प्रयागराज में उन्होंने घोषणा की है कि 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों में विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' एकजुट रहेगा। हालांकि, उन्होंने कांग्रेस का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया, लेकिन यह संकेत साफ है कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन यूपी में जारी रहेगा। कुछ विश्लेषक इसे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। आखिर अखिलेश यादव ऐसा क्यों कर रहे हैं, और इसके पीछे उनकी क्या रणनीति हो सकती है?
2024 के लोकसभा चुनावों में सपा और कांग्रेस गठबंधन की सफलता को देखें। इस चुनाव में दोनों दलों ने यूपी की 80 सीटों में से 43 पर जीत हासिल की, जिसमें सपा को 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं। यह प्रदर्शन सपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि उसने राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर अपनी सियासी ताकत का प्रदर्शन किया। अखिलेश का यह ऐलान उसी सफलता को भुनाने की कोशिश माना जा रहा है। वह जानते हैं कि यूपी जैसे जटिल राज्य में जहां जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दे चुनावों को प्रभावित करते हैं, एक मजबूत गठबंधन बीजेपी को चुनौती देने का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है।
कांग्रेस की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या अखिलेश कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि अखिलेश लालू प्रसाद यादव की तरह एक क्षेत्रीय नेता की भूमिका निभाना चाहते हैं, जो गठबंधन में बड़ा भाई बनकर राष्ट्रीय दलों को अपनी शर्तों पर साथ लाते हैं। लालू ने बिहार में राजद के नेतृत्व में कई गठबंधन बनाए और कांग्रेस जैसे दलों को सीमित सीटें देकर अपनी प्रभुता कायम रखी। अखिलेश भी यूपी में ऐसा ही करना चाहते हैं, जहां सपा की जड़ें गहरी हैं और वह बीजेपी के खिलाफ मुख्य विपक्षी ताकत है।

इसके अलावा, अखिलेश का यह कदम उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को भी दर्शाता है। सपा यूपी में सबसे बड़े विपक्षी ब्लॉक के रूप में उभरी है, और अखिलेश जानते हैं कि यूपी की सियासत राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करती है। कांग्रेस को साथ रखकर वह न केवल बीजेपी-विरोधी वोटों को एकजुट करना चाहते हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं। हालांकि, यह रणनीति जोखिम भरी भी है।
यह कांग्रेस के लिए भी एक संदेश है कि सपा गठबंधन में ड्राइविंग सीट पर रहेगी। अगर यह रणनीति सफल रही, तो अखिलेश यूपी में लालू जैसा रोल अदा कर सकते हैं, लेकिन अगर गठबंधन में दरार आई, तो यह 2017 की तरह नुकसानदायक भी हो सकता है।