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माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है

(उत्कर्ष पटेल)
भारतीय संस्कृति में माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा को सर्वोच्च धर्म और ईश्वर की सेवा के बराबर माना जाता है। ‘मातृदेवो भव, पितृदेवो भव’ जैसी वैदिक उक्ति हमें सिखाती है कि माता-पिता प्रत्यक्ष देवता हैं जिनकी सेवा के बिना आध्यात्मिक और नैतिक जीवन अधूरा है। यह भावना रामायण और ऐतिहासिक उदाहरणों में भी परिलक्षित होती है जो हमें जीवन के मूल्य सिखाती है।
रामायण में भगवान श्री राम का जीवन माता-पिता की आज्ञा का पालन और सेवा का आदर्श उदाहरण है। श्री राम ने राजा दशरथ की इच्छा और माता कैकेयी के वचन का सम्मान करने के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया। उसने अपने पिता की बात मानकर अपना राज्य, सुख और वैभव त्याग दिया। जिससे पता चलता है कि माता-पिता की सेवा करना और उनकी आज्ञाओं का पालन करना ईश्वर की भक्ति के समान ही पवित्र है। भगवान श्री राम का यह आदर्श आज भी लोगों को प्रेरित करता है।
श्रवण कुमार की कहानी बुजुर्गों की सेवा का एक और उदाहरण है। श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को गाड़ी में बिठाकर तीर्थ यात्रा पर ले गए थे, जो उनकी असीम भक्ति और सेवा का प्रतीक है। दुर्भाग्यवश राजा दशरथ के हाथों उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी सेवा की कहानी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। यह उदाहरण दिखाता है कि बुज़ुर्गों की सेवा करना सिर्फ़ एक कर्तव्य नहीं बल्कि ईश्वर को पाने का मार्ग है।
चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य का उदाहरण भी ऐतिहासिक संदर्भ में महत्वपूर्ण है। चाणक्य ने हमेशा अपने माता-पिता की सेवा और उनके मूल्यों को महत्व दिया, जिसके कारण उनका जीवन नैतिकता और ज्ञान का प्रतीक बन गया। इसी प्रकार महात्मा गांधी ने भी अपने जीवन में अपने माता-पिता के आदर्शों और सेवा को महत्व दिया। गांधीजी के विचारों में उनकी माता पुतलीबाई के धार्मिक और नैतिक जीवन का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
आधुनिक समाज में बुजुर्गों की देखभाल अधिक महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि तेज गति वाली जीवनशैली और व्यक्तिवाद ने परिवारों में दूरियां पैदा कर दी हैं। नर्सिंग होम की संख्या में वृद्धि चिंताजनक स्थिति है। ऐसे समय में रामायण के आदर्श हमें याद दिलाते हैं कि बड़ों की सेवा करना कोई कर्तव्य नहीं बल्कि ईश्वर से निकटता प्राप्त करने का एक तरीका है। उनकी सेवा के माध्यम से हम विनम्रता, सहनशीलता और कृतज्ञता जैसे गुण सीखते हैं, जो आध्यात्मिक विकास का आधार हैं।
अंततः, माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा करना ईश्वर की सेवा करना है क्योंकि वे हमारे जीवन के निर्माता और मार्गदर्शक हैं। रामायण और ऐतिहासिक उदाहरण हमें सिखाते हैं कि केवल इस सेवा केमाध्यम से ही हम सही मायने में धर्म, नैतिकता और अध्यात्म के मार्ग को प्राप्त कर सकते हैं। आज के युग में इन मूल्यों को अपनाकर हम समाज को अधिक संवेदनशील और मानवीय बना सकते हैं।
(लेखक एक प्रतिष्ठित उद्यमी और समाज सेवक हैं। लेख में व्यक्त किये गये विचार उनके निजी विचार हैं। )