‘राज ठाकरे, मुंबई गुजरातियों की भी है- हमने भी पीढ़ी दर पीढ़ी पसीना बहाया है’

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(उत्कर्ष पटेल)

सिर्फ मराठी समुदाय ही नहीं, बल्कि गुजराती और पारसी समुदाय ने भी मुंबई में गहरी और मजबूत नींव रखी है। ऐतिहासिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से इन तीनों समुदायों ने मिलकर इस शहर को आज के स्वरूप में पहुंचाया है।

सात द्वीपों से महानगर तक

मुंबई मूल रूप से सात अलग-अलग द्वीपों का समूह था। यहां सबसे पहले अगर, भंडारी और कोली जैसे मराठी मूल के समुदाय बसे। 13वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक मुंबई गुजरात सल्तनत के अधीन था, जिसके कारण कई गुजराती वानिया और पारसी परिवार मुंबई में बसने लगे।

बाद में पुर्तगालियों और फिर अंग्रेजों ने मुंबई का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। अंग्रेजों ने मुंबई को व्यापार के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित करना शुरू किया। यहीं से गुजराती और पारसी समुदायों का इस शहर से गहरा रिश्ता शुरू होता है।

1. टाटा परिवार (नवसारी से मुंबई)

जमशेदजी टाटा ने 1868 में टाटा समूह की स्थापना की। उन्होंने कपड़ा, इस्पात, ऑटोमोबाइल और आतिथ्य क्षेत्र में एक नया चमत्कार किया। टाटा समूह न केवल उद्योग के लिए बल्कि सामाजिक विकास के लिए भी अग्रणी रहा है - जैसे IISc, TISS, टाटा मेमोरियल आदि की स्थापना।

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2. वाडिया परिवार (सूरत से मुंबई)

लवजी नौशेरवानजी वाडिया ने 1736 में जहाज निर्माण उद्योग की शुरुआत की। वाडिया परिवार ने ब्रिटिश नौसेना के लिए दुर्लभ और मजबूत जहाजों का निर्माण शुरू किया। इस उद्योग ने मुंबई को वैश्विक शिपिंग मानचित्र पर ला खड़ा किया।

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3. गोदरेज परिवार (भरूच से मुंबई)

अर्देशर गोदरेज ने 1897 में गोदरेज एंड बॉयस की शुरुआत की। उन्होंने भारत के पहले ताले, साबुन और सुरक्षा उपकरण बनाए।

4. पूनावाला परिवार (नवसारी से मुंबई)

साइरस पूनावाला ने 1966 में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की स्थापना की, जो आज दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माण कंपनी है। इसके अलावा देश के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी भी गुजराती हैं, उन्होंने मुंबई में दुनिया का दूसरा सबसे महंगा घर बनवाया है।

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जैन और वाणियों का योगदान: हीरा उद्योग

पालनपुर और भावनगर जैसे इलाकों के जैन वाणियों ने हीरा उद्योग में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने मुंबई को हीरे की कटाई, पॉलिशिंग और निर्यात में वैश्विक पहचान दिलाई। ओपेरा हाउस, भारत डायमंड बोर्स (BDB) जैसे इलाकों में उनकी गहरी मौजूदगी है। आजकल मुंबई की आर्थिक कमजोरी के बावजूद हीरा उद्योग ने शहर को पैसा, नौकरी और प्रतिष्ठा दी है।

मराठी समुदाय का योगदान: श्रम और संस्कृति

मराठी समुदाय ने मुंबई के स्थानीय प्रशासन, मिल उद्योग और निर्माण क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कपड़ा मिलों को सुचारू रूप से चलाने के लिए बड़ी संख्या में मराठी लोग मजदूर के रूप में आगे आए। उनका नेतृत्व बीएमसी (बृहद मुंबई नगर निगम) जैसी संस्थाओं में देखा जाता है।

सांस्कृतिक रूप से मराठी परंपरा नाटक, साहित्य और संगीत में मजबूत रही है। मराठी समुदाय की राजनीतिक और सामाजिक शक्ति मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी बनाने के लिए जिम्मेदार रही है।

राजनीति और विवाद

हाल के दिनों में, राजनीतिक दल और नेता - खासकर राज ठाकरे - गुजरातियों के खिलाफ विवादास्पद बयान देते हैं कि 'गुजराती मुंबई पर कब्जा कर रहे हैं'। ऐसे बयान ऐतिहासिक तथ्यों और सह-अस्तित्व की भावना को नजरअंदाज करते हैं।

मुंबई किसी एक समुदाय की संपत्ति नहीं है। यह शहर हमेशा से कई भाषाओं, संस्कृतियों और धर्मों का मिश्रण रहा है। गुजराती समुदाय ने न केवल व्यापार किया है, बल्कि अस्पतालों, शिक्षा और सामाजिक संस्थाओं में भी बहुत योगदान दिया है।

सह-अस्तित्व का शहर

मुंबई मराठी श्रम, गुजराती व्यापार कौशल और पारसी दृष्टि - तीनों का एक गहन उपहार है। मुंबई को एक समुदाय के कच्चे दावों के बजाय उसके साझा इतिहास और योगदान के लिए पहचाना जाना चाहिए। गुजराती, पारसी और मराठी - तीनों समुदायों ने इस शहर को अपना घर बनाया है और इसकी उपलब्धियों में लगातार योगदान दिया है।

(लेखक एक प्रतिष्ठित उद्यमी और समाज सेवक हैं। लेख में व्यक्त किये गये विचार उनके निजी विचार हैं। )

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