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दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार: रामदेव को उनके 'शरबत जिहाद' वाले बयान को बताया अक्षम्य, वीडियो हटाने का आदेश

पतंजलि के संस्थापक बाबा रामदेव को उनके "शरबत जिहाद" वाले बयान के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को योग गुरु कड़ी फटकार लगाई। यह बयान हमदर्द पेय रूह अफजा को निशाना बनाकर दिया गया था। कोर्ट ने इस टिप्पणी को 'अक्षम्य' और "अविश्वसनीय" करार दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी हमदर्द द्वारा रामदेव के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान की। इस मामले में रामदेव को पांच दिनों के भीतर संबंधित वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट हटाने का आदेश दिया गया।
बाबा रामदेव ने एक वीडियो में हमदर्द के रूह अफजा पर निशाना साधते हुए कहा कि इस कंपनी की आय का उपयोग मस्जिदों और मदरसों के निर्माण में किया जाता है। उन्होंने पतंजलि के नए गुलाब शरबत को पेश करते हुए कहा, एक कंपनी शरबत बनाती है, लेकिन उनकी आय मस्जिद बनाने में जाती है। हमारी आय गुरुकुल बनाने में जाएगी। रामदेव ने इसे 'लव जिहाद' की तरह 'शरबत जिहाद' करार दिया। इस वीडियो को पतंजलि प्रोडक्ट्स ने फेसबुक पर साझा किया, जिसमें कैप्शन में लिखा था, अपने परिवार और मासूम बच्चों को सॉफ्ट ड्रिंक्स और 'शरबत जिहाद' के नाम पर बिकने वाले टॉयलेट क्लीनर के जहर से बचाएं। घर में सिर्फ पतंजलि शरबत और जूस लाएं।"

हमदर्द ने इस बयान को सांप्रदायिक और अपमानजनक बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हमदर्द की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि रामदेव का बयान न केवल रूह अफजा का अपमान करता है, बल्कि यह धर्म के आधार पर हमदर्द पर हमला है और इसे घृणा फैलाने वाला बयान माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह एक चौंकाने वाला मामला है, जो उत्पाद की निंदा से कहीं आगे बढ़कर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है। दूसरी ओर, रामदेव के वरिष्ठ वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि उनके मुवक्किल तुरंत वीडियो हटा लेंगे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान सख्त रुख अपनाते हुए कहा, "यह बयान न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि यह कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोरता है। इसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।" कोर्ट ने रामदेव को पांच दिनों के भीतर वीडियो और संबंधित पोस्ट हटाने का निर्देश दिया है, साथ ही मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाने का फैसला किया।
यह मामला भारत में सांप्रदायिक सद्भाव और कॉर्पोरेट प्रतिस्पर्धा के बीच एक संवेदनशील मुद्दे को उजागर करता है। हमदर्द, जो रूह अफजा जैसे पारंपरिक पेय के लिए जाना जाता है, ने इस घटना को अपनी प्रतिष्ठा पर हमला बताया है। दूसरी ओर रामदेव पहले भी अपने बयानों और उत्पादों को लेकर विवादों में रहे हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के नाम पर सांप्रदायिक बयानबाजी को बढ़ावा देना उचित है। कोर्ट का यह फैसला न केवल रामदेव के लिए एक सबक है, बल्कि यह समाज में जिम्मेदार बयानबाजी की जरूरत को भी रेखांकित करता है।