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हीरा मंदी पाटीदार समुदाय के लिए बहुत कठिन समय लेकर आई

(Utkarsh Patel)
हीरा मंदी ने पाटीदार समुदाय के हर दिल में चिंता पैदा कर दी है। सबसे कठिन प्रश्न बच्चों के भविष्य और आजीविका को लेकर सामने आये हैं। सौराष्ट्र के गांवों से लेकर सूरत की गलियों तक, पाटीदार समुदाय के लाखों परिवारों का जीवन हीरा उद्योग की चमक से जुड़ा हुआ है। अमरेली, भावनगर और जूनागढ़ के कृषक परिवारों की दो पीढ़ियों ने हीरे पीसने और कारीगरी में अपना भविष्य बर्बाद कर दिया है। लेकिन आज हीरा उद्योग में मंदी इन परिवारों के दिलों में चिंता पैदा कर रही है। बच्चों की शिक्षा, घरेलू रखरखाव और चिकित्सा व्यय जैसे गंभीर मुद्दे अब सूरत के वराछा के आभूषण कलाकार पाटीदार परिवार के लिए चिंता का कारण बन रहे हैं।
मंदी का कहर: हर घर का दुख
हीरा उद्योग में मंदी का असर 2025 की शुरुआत से ही स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। वैश्विक बाजार में हीरों की घटती मांग, सिंथेटिक हीरों की बढ़ती लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के असर ने सूरत के हीरा उद्योग को भारी झटका दिया है। सूरत के वराछा और कटारगाम की हीरा मिलों में काम कम हो गया है और लाखों कारीगरों की नौकरियां चली गई हैं। इस मंदी ने पाटीदार समाज के परिवारों को ऐसी स्थिति में डाल दिया है जिसकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। रत्न कलाकार दिनेशभाई पटेल निराश स्वर में कहते हैं, "हम दिन में 12 घंटे काम करते थे, हमारी पीठ दर्द करती थी, हमारी आंखें थक जाती थीं, लेकिन हमारे पास घर चलाने का साहस था।" अब दो महीने से वेतन नहीं मिला। बच्चों की स्कूल फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं, घर का किराया बकाया है और अस्पताल का बिल भरना भी मुश्किल हो गया है।’ दिनेशभाई की यह पीड़ा अब हजारों पाटीदार परिवारों की हकीकत बन गई है।
बच्चों का भविष्य: शिक्षा पर मंडरा रहे खतरे के बादल
पाटीदार समाज ने सदैव शिक्षा को प्राथमिकता दी है। गांवों से लेकर शहरों तक, इस समुदाय के माता-पिता ने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की है। लेकिन हीरे की मंदी ने इन सपनों को चकनाचूर कर दिया है। माता-पिता के पास स्कूल और कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं, और कई बच्चों के स्कूल छोड़ने का खतरा है।
वराछा में रहने वाली मां लताबेन आंखों में आंसू भरकर कहती हैं, ''मेरा बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है।'' मैं चाहता हूं कि वह डॉक्टर बने, लेकिन मेरे पास अब स्कूल की फीस के लिए 15,000 रुपये देने के लिए कुछ भी नहीं है। पति की आमदनी बंद हो गई है और परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है।’ लताबेन जैसी माताओं की यह चिंता अब घर-घर फैल रही है। पाटीदार समुदाय का गौरव माने जाने वाले बच्चों का भविष्य अब अनिश्चितता के बादलों में घिरा हुआ है।
चिकित्सा व्यय: जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ा महंगा
आर्थिक संकट के साथ-साथ चिकित्सा व्यय का बोझ भी पाटीदार परिवारों के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। पीठ दर्द, आंखों की समस्याएं और हीरे घिसने के कठिन परिश्रम से होने वाली शारीरिक थकान इन कारीगरों के जीवन का हिस्सा बन गई है। लेकिन अब जब आमदनी बंद हो गई है तो दवाइयां और डॉक्टर की फीस देना असंभव हो रहा है।
एक बुजुर्ग पाटीदार शांतिभाई कहते हैं, "मुझे अस्पताल जाना है क्योंकि मेरी सांस लेने की समस्या खराब हो गई है।" लेकिन मैं डॉक्टर का बिल, रिपोर्ट और दवा के लिए 5000 रुपए कहां से लाऊंगा? मेरा बेटा हीरे का काम करता था, लेकिन अब उसके पास भी पैसे नहीं हैं।’ ऐसी स्थिति में, कई परिवार इलाज को टाल रहे हैं, जिससे भविष्य में उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
रोजी-रोटी की चिंता: दैनिक जीवन कठिन हो गया है
पाटीदार जौहरी परिवारों के लिए अब गुजारा करना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। मकान का किराया, दैनिक राशन और बच्चों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे नहीं हैं। कई परिवार कर्ज लेकर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन इस कर्ज का बोझ अब असहनीय होता जा रहा है। एक गृहिणी निताबेन रोते हुए कहती हैं, "घर से दाल-चावल भी खत्म हो गया है।" बच्चे भूखे सो जाते हैं और मैं कुछ नहीं कर सकती। यह जीवन कब तक चलेगा?
नई दिशा: चिंता से आशा की ओर मार्ग
इस विकट परिस्थिति में भी निराशा कोई समाधान नहीं है। पाटीदार समाज ने हमेशा ही मुश्किलों का साहस के साथ सामना किया है और आज भी उसी साहस की जरूरत है। अब समय आ गया है कि नए पेशे और कौशल सीखे जाएं और हीरा उद्योग पर निर्भरता कम की जाए। युवा लोग कृषि, लघु व्यवसाय, डिजिटल क्षेत्र या सेवा उद्योग में अपना भविष्य तलाश सकते हैं।
सरकार को भी इस संकट में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। यदि कारीगरों के लिए राहत पैकेज, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम और स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था की जाए तो इन परिवारों को कुछ राहत मिल सकती है। सामाजिक संगठनों को भी आगे आकर बच्चों की शिक्षा और परिवारों की आजीविका में मदद करनी चाहिए।
प्रेरणा का क्षण: छोटा साहस, बड़ी आशा
इन चिंताओं के बावजूद कुछ पाटीदार युवाओं ने साहस दिखाया है। हीरा उद्योग में गिरावट आने पर अमरेली के एक युवक हरेशभाई ने गांव में आधुनिक खेती शुरू की। वह कहते हैं, "पहले तो मुझे डर लगा, लेकिन अब धीरे-धीरे आमदनी होने लगी है।" मेरे बच्चों की फीस भर गई है और गांव के घर में शांति है।’ हरेशभाई जैसे लोग साबित करते हैं कि मुश्किलों से निकलने का रास्ता है।
संघर्ष से एक नई सुबह
हीरे की मंदी ने पाटीदार समुदाय के दिलों में चिंता पैदा कर दी है, लेकिन इस चिंता के माध्यम से आशा की राह खोजना संभव है। बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा व्यय और आजीविका की लड़ाई जीतने के लिए समाज को नई दिशाओं में मिलकर काम करना होगा। यह संकट एक चुनौती है, लेकिन यह एक नई शुरुआत का अवसर भी है। यदि आज पाटीदार समुदाय की कड़ी मेहनत और साहस नई दिशा तलाशेंगे तो इस अंधेरी रात के बाद एक नया सवेरा आएगा।
(लेखक एक प्रतिष्ठित उद्यमी और समाज सेवक हैं। लेख में व्यक्त किये गये विचार उनके निजी विचार हैं।)