माँ की ममता की बात तो सब करते हैं पर पिता के त्याग की बात कोई नहीं करता

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(उत्कर्ष पटेल)

माँ की ममता की बात तो सब करते हैं पर पिता के त्याग की बात कोई नहीं करता। माँ का प्यार एक सागर की तरह होता है जिसकी गहराई और विशालता हर कोई देखता है। पर पिता का त्याग एक पहाड़ की तरह होता है जो चुपचाप खड़ा होकर परिवार को सहारा देता है और जिसकी ऊँचाई की शायद ही कोई कद्र करता हो। माँ और पिता दोनों ही परिवार के दो पहिये होते हैं पर जहाँ माँ अपनी भावनाएँ व्यक्त करती है और प्यार बरसाती है, वहीं पिता चुप रहकर अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाता है। यह चुप्पी कमज़ोरी नहीं बल्कि एक ताकत है जो परिवार के भविष्य को आकार देती है।

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समाज में अक्सर कहा जाता है कि पिता के पास समय नहीं होता। पर सवाल उठता है कि समय कहाँ से आता है? पिता वो व्यक्ति होता है जो सुबह सूरज उगने से पहले घर से निकल जाता है और रात को तारे चमकने पर थका हुआ शरीर लेकर लौटता है। कभी उसके हाथ में पैसों का थैला होता है तो कभी अपने बच्चों की खुशी के लिए छोटा सा तोहफा। लेकिन उसके चेहरे पर थकान की लकीरें और आंखों में छिपी चिंता शायद ही कोई देख पाता है। वो चिंता परिवार की खुशहाली, बच्चों की पढ़ाई, घर की आर्थिक जिम्मेदारियों की होती है। पिता परिवार का माध्यम होता है, जो अपनी इच्छाओं को दबा कर परिवार के सपनों को पंख देता है।

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पिता का त्याग सिर्फ आर्थिक जिम्मेदारियों से ही नहीं बल्कि उन भावनाओं से भी जुड़ा होता है जिन्हें शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। बच्चे के रिपोर्ट कार्ड में कम नंबर देखकर वो चुपचाप आहें भरता है लेकिन बच्चे को हिम्मत देता है। अपनी जरूरतों को भूलकर वो अपने बच्चों की ख्वाहिशों को पूरा करता है। उसकी आंखों में अपने बच्चों को वो जिंदगी देने का सपना होता है जो शायद उसे नहीं मिली। वो हर रोज छोटे-छोटे त्याग करके इस सपने को साकार करता है।

पिता को अक्सर कठोर दिल वाला माना जाता है, लेकिन एक पिता का दिल भी मां की तरह कोमल होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि वह अपनी भावनाओं को छिपाकर परिवार के लिए ढाल बन जाता है। जब बच्चा बीमार होता है तो मां आंसू बहाती है, लेकिन पिता रात को सोना भूलकर दवा और डॉक्टर का इंतजाम करता है। जब घर में आर्थिक तंगी होती है तो मां चिंता करती है, लेकिन पिता चुपचाप मेहनत करके परिवार की गाड़ी को पटरी पर चलाता है।

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पिता का त्याग हर परिवार की एक ऐसी कहानी है जो शायद ही कभी गाई जाती है। उनकी मेहनत, उनकी चिंताएं, उनकी भावनाएं अक्सर बेशुमार रह जाती हैं। लेकिन आज हम उन्हें याद करें। आइए उस पिता को सलाम करें जो परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठाकर चुपचाप आगे बढ़ता है। पिता का महत्व मां जितना ही है क्योंकि दोनों मिलकर एक परिवार को पूर्णता देते हैं। आज एक बार उस पिता को याद करें या गले लगाएं। उनका शुक्रिया अदा करें क्योंकि उनके त्याग के बिना आज हमारा जीवन अधूरा होता।

(लेखक एक प्रतिष्ठित उद्यमी और समाज सेवक हैं। लेख में व्यक्त किये गये विचार उनके निजी विचार हैं। )

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