वह स्थान जहां भगवान शिव ने मां पार्वती की परीक्षा ली थी, यहां अनोखे रूप में होती है शिवलिंग की पूजा

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तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित एकांबेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और पवित्र स्थान है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा एक खास शिवलिंग के रूप में की जाती है। इस शिवलिंग को बालुका लिंगम कहा जाता है। यह शिवलिंग रेत से बनी है और इसे अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यहां भगवान शिव को 'एकांबेश्वर' या 'एकंबरनाथ' नाम से जाना जाता है।

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यह मंदिर हिंदू धर्म के शैव संप्रदाय के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह पंच महाभूत स्थलों (पांच तत्वों के मंदिरों) में से एक है। इसे पृथ्वी तत्व से संबंधित माना जाता है। इस भव्य मंदिर के चारों ओर विशाल गोपुरम (प्रवेश द्वार) बनाए गए हैं, जिसमें दक्षिण दिशा का गोपुरम सबसे ऊँचा है। इस मंदिर का निर्माण शुरुआती काल में चोल राजवंश ने 9वीं शताब्दी में कराया था और बाद में विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने इसका विस्तार कराया। मंदिर परिसर में एक विशाल और प्राचीन आम का पेड़ है। इस पवित्र पेड़ को लेकर मान्यता है कि यह 3500 से अधिक वर्ष पुराना है। इस पेड़ की विशेषता यह है कि इसकी हर डाल पर अलग-अलग रंग और स्वाद के आम आते हैं।

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एक पौराणिक कथा के अनुसार, मां पार्वती ने इस पेड़ के नीचे वेगवती नदी के किनारे तपस्या की थी। उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए रेत से शिवलिंग का निर्माण कर उसकी पूजा की थी। भगवान शिव ने माता पार्वती की परीक्षा लेने के लिए अग्नि प्रज्वलित की, जिससे वे जलने लगीं। तब उन्होंने अपने भाई भगवान विष्णु का आह्वान किया। विष्णु जी ने शिव के माथे पर स्थित चंद्र की शीतल किरणों से अग्नि शांत की।

इसके बाद शिव ने पार्वती की तपस्या में विघ्न डालने के लिए गंगा नदी को भेजा, लेकिन पार्वती ने गंगा से प्रार्थना की कि वे दोनों बहनें हैं, और उन्हें विघ्न नहीं डालना चाहिए। गंगा ने पार्वती की भावनाओं को समझा और उनकी साधना में कोई विघ्न नहीं डाला।

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शिव-पार्वती विवाह की पौराणिक कथा

एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब देवी पार्वती तपस्या कर रही थीं, तब भगवान शिव ने वेगवती नदी में बाढ़ ला दी, जिसके कारण पार्वती द्वारा बनाया गया पृथ्वी शिवलिंग बहने की कगार पर आ गया था। देवी ने तुरंत ही शिवलिंग को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी रक्षा की। इस घटना के कारण उन्हें तमिल में तजुवा कुजनथार कहा जाता है। इस समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और माता को वरदान मांगने को कहा। तब मां पार्वती ने शिव से विवाह करने का वरदान मांगा और भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी बना लिया।

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