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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंदजी महाराज पर दिए अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा- 'मेरे लिए वे बच्चे जैसे हैं...'

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगदगुरु रामभद्राचार्य महाराज ने संत प्रेमानंद जी महाराज पर दिए गए अपने बयान पर स्पष्टीकरण दिया है। सोशल मीडिया पर मामला गरमाने के बाद उन्होंने जारी एक वीडियो में स्पष्ट किया है कि, 'उन्हें प्रेमानंद महाराज से कोई द्वेष नहीं है।' प्रेमानंद महाराज को संस्कृत का एक अक्षर भी ज्ञान नहीं है, इस टिप्पणी पर विवाद और गहरा गया था। जगदगुरु ने एक पॉडकास्ट में कहा था कि वे कोई चमत्कारी और विद्वान नहीं हैं। अगर वे चमत्कारी हैं, तो वे मेरे एक संस्कृत श्लोक का अर्थ बता दें तो मैं उन्हें मान जाऊंगा। इसके बाद सोशल मीडिया पर जगदगुरु के बयान के लिए उन्हें ट्रोल किया गया। अब जगदगुरु रामभद्राचार्य महाराज ने अपनी टिप्पणी का विस्तार से व्याख्या करते हुए संतों के एकजुट होने की बात कही है।
जगदगुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने 3:26 मिनट के वीडियो बयान में कहा है कि, 'आज सनातन धर्म पर चारों ओर से आक्रमण हो रहा है। सभी हिंदुओं को अपने मतभेद भूलकर एक होने की जरूरत है। 500-550 साल की लड़ाई जीतकर जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हुआ है। जल्द ही मथुरा और काशी भी मिलकर रहेंगे।' जगदगुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्होंने प्रेमानंद महाराज पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की है। आचार्य होने के नाते वे सभी को कहते हैं कि उन्हें संस्कृत पढ़ना चाहिए।

जगदगुरु ने कहा कि, जहां तक प्रेमानंद जी की बात है, मैंने प्रेमानंद जी के लिए कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की है. वे मेरे लिए बच्चे (पुत्र) जैसे हैं। उनसे मेरी अवस्था भी बड़ी है। इस संबंध में मैंने उनसे कहा कि उन्हें संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। मैं सभी संतों और हिंदू लोगों से कहता हूं कि उन्हें संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। जब भी कृष्ण जन्मभूमि का केस कोर्ट में होगा, तब मैं वहां खड़ा मिलूंगा।
जगदगुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि आज के समय में सामान्य लोग चोर-अपहरणकर्ता प्रवचन दे रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हमने सभी को संस्कृत पढ़ने को कहा है। हमने अपने उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास को भी संस्कृत का अध्ययन करने को कहा है। हर हिंदू को संस्कृत पढ़ना चाहिए। मैं सिर्फ ऐसे ही नहीं कहता, आज भी मैं 18-18 घंटे संस्कृत का अध्ययन करता हूं। मैं चमत्कारों को नमस्कार नहीं करता।
श्री तुलसी पीठाधीश्वर ने कहा कि, 'मैंने धीरेंद्र शास्त्री को भी कहा कि पठन-पाठन करो. भारत की दो प्रतिष्ठाएं हैं, संस्कृत और संस्कृति भारतीय संस्कृति को जानने के लिए संस्कृत का अध्ययन करना बहुत जरूरी है। मैं किसी के लिए कुछ कह नहीं रहा हूं। सभी संत मेरे लिए प्रिय हैं और प्रिय रहेंगे। विधर्मी शक्तियां सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए हमारी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही हैं। वे संतों में मतभेद पैदा करते हैं।'

जगदगुरु ने आगे कहा कि सभी साधु-संतों को एक हो जाना चाहिए। उन्हें हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए तैयार रहना चाहिए। मैं यही कह रहा हूं। इसके साथ मैं यह भी कह रहा हूं कि भारतीय संस्कृति को समझने के लिए हर व्यक्ति को संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि मेरी बात में जो भ्रम लाया जा रहा है वह गलत है। मैंने प्रेमानंद या किसी भी संत के प्रति कोई गलत टिप्पणी नहीं की है, और न ही मैं ऐसा करूंगा।
रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा कि, जब भी प्रेमानंद जी मुझे मिलने आएंगे, निश्चित रूप से मैं उन्हें आशीर्वाद दूंगा। मैं उन्हें हृदय से लगाऊंगा, मैं श्री रामचंद्र जी से प्रार्थना भी करता हूं। निरंतर उनके लंबे आयु की कामना करता हूं।
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