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अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 4 बार फोन किया, लेकिन PM मोदी ने बात करने से मना कर दिया; जर्मन अखबार की रिपोर्ट में बड़ा दावा

भारत-अमेरिका के संबंधों में पिछले कुछ समय से खटास बढ़ रही है। इसी बीच जर्मन अखबार फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन (FAZ) की एक रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप को लेकर एक बड़ा दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल के हफ्तों में कम से कम 4 बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात करने की कोशिश की थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर बार फोन उठाने से इनकार कर दिया था। हालांकि, सरकारी अधिकारियों ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। अखबार ने रिपोर्ट में बताया था कि यह घटना प्रधानमंत्री मोदी के गुस्से और उनकी सतर्कता दोनों को दर्शाती है।
राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करने के ये प्रयास ऐसे समय में हुए थे जब उनकी सरकार ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया था, जो ब्राजील के अलावा किसी भी देश पर लगाई गई सबसे अधिक ड्यूटी है। पिछले 25 वर्षों से विकसित हुए भारत-अमेरिका के संबंधों में खटास तब आ गई जब राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को व्यापार अधिशेष होने के लिए निशाना बनाया। इसके अलावा अमेरिका ने रूस से क्रूड ऑयल खरीदने के लिए भारत पर पेनल्टी भी लगा दी।

बर्लिन स्थित ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सह-संस्थापक और निदेशक थॉर्स्टन बेनर ने जर्मन अखबार की X पर की गई रिपोर्ट को साझा करते हुए लिखा कि, ‘FAZ का दावा है कि ट्रंप ने हाल के हफ्तों में मोदी को 4 बार फोन करने की कोशिश की थी, लेकिन मोदी ने फोन रिसीव करने से इनकार कर दिया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत की अर्थव्यवस्था को 'डेड इकोनॉमी' बताया था। उन्होंने 31 जुलाई को कहा था कि भारत रूस के साथ क्या करता है, इसकी मुझे चिंता नहीं है। वे अपनी 'डेड इकोनॉमी' के साथ डूब सकते हैं. इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अगस्त को किसी का नाम लिए बिना पलटवार किया और कहा कि भारत दुनिया की शीर्ष 3 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने की ओर बढ़ रहा है। जर्मन अखबार ने लिखा कि यह इंगित करता है कि ट्रंप के बयान से मोदी को दुख हुआ है। अखबार ने यह भी कहा कि ट्रंप का तरीका अक्सर उन्हें अमेरिकी बाजार पर अन्य देशों की निर्भरता का लाभ उठाने में मदद करता है। लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान मोदी ने इसका विरोध किया और ट्रंप के साथ सहयोगी संबंध बनाए रखते हुए भारत के आर्थिक हितों से कोई समझौता नहीं हुआ था।
FAZ ने कहा कि इस स्थिति का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि ट्रंप बार-बार मोदी को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘भारतीय प्रधानमंत्री अभी भी बात करने से इनकार कर रहे हैं, यह उनके साथ-साथ उनकी सावधानी को भी दर्शाता है।’ जर्मन अखबार ने इस चेतावनी के पीछे का कारण विस्तार से समझाया। ट्रंप ने पहले वियतनाम और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को अंतिम रूप दिया था, जिसे प्रतिनिधिमंडलों द्वारा बहुत मेहनत से तैयार किया गया था, जनरल सेक्रेटरी टू लाम (वियतनामी नेता) के साथ केवल एक फोन कॉल में। किसी ठोस समझौते पर पहुंचे बिना, ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की थी कि ट्रेड डील हो गई है। FAZ ने लिखा कि, ‘मोदी उसी जाल में फंसना नहीं चाहते हैं।

न्यूयॉर्क में न्यू स्कूल में भारत-चीन संस्थान के सह-निदेशक मार्क फ्रेज़ियर के अनुसार, भारत का कभी अमेरिका के साथ खड़े होने और चीन का विरोध करने का इरादा नहीं था। मार्क फ्रेज़ियर का कहना है, ‘अमेरिका की रणनीति काम नहीं कर रही है। भारत-प्रशांत की अमेरिका की अवधारणा जिसमें भारत को चीन को रोकने में अमेरिका की मुख्य भूमिका निभानी थी, वह अब टूट रही है।’ इस अखबार में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत में ट्रंप की निर्माण परियोजनाएं भी विवाद का कारण बनी हैं। ट्रंप परिवार की कंपनी ने दिल्ली के पास उनके नाम से लग्जरी टावर बनाए हैं। इन टावरों में 12 मिलियन यूरो तक की कीमत के 300 अपार्टमेंट मई के मध्य में एक ही दिन में बिक गए थे। ट्रंप के बयानों से भारत-अमेरिका संबंधों में भी खटास आई थी, लेकिन जब ट्रंप ने दावा किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के सैन्य संघर्ष में युद्धविराम केवल उनके प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया है, तो भारतीय पक्ष ने नाराजगी व्यक्त की।
रिपोर्ट में बताया गया है कि, ट्रंप ने घोषणा की कि वे पाकिस्तान के साथ तेल भंडार विकसित करेंगे, जिसे भारत अपने चिरप्रतिद्वंद्वी से खरीदेगा। इस बयान ने स्थिति को और खराब कर दिया। ओवल ऑफिस में ट्रंप द्वारा पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ रात्रिभोज का आयोजन भी भारत में उत्तेजना के रूप में देखा गया था।’ क्या ट्रंप की नीतियों के कारण भारत-चीन संबंध सुधर रहे हैं? रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुराने तनाव कम हो रहे हैं। पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उन्हें सबसे अधिक सम्मान मिला है। इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ट्रंप की नीतियां भारत को चीन के करीब ला रही हैं। फ्रेज़ियर का कहना है कि, ‘भारत को चीन की अधिक जरूरत है, चीन को भारत की नहीं। भारत का यह रुख केवल अमेरिकी टैरिफ का जवाब नहीं है, बल्कि रणनीतिक है। अमेरिका के पीछे हटने के साथ भारत और चीन के हित मिलते हैं। दोनों वैश्विक प्रभाव और औद्योगिक विकास चाहते हैं। भारत चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसकी आर्थिक और राजनीतिक ताकत बढ़ा सकता है।
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुरोध पर 17 जून को, पीएम मोदी ने 17 जून को बात की थी। दोनों कनाडा में G7 शिखर सम्मेलन के दौरान मिलने वाले थे। लेकिन ट्रंप निर्धारित समय से पहले ही अमेरिका लौट गए थे।
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