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गणेशजी को कितने दिनों तक घर में रखना शुभ होता है? जानें सभी दिनों का महत्व

गणेश चतुर्थी भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इस दिन विघ्नहर्ता गणपति बप्पा का हर घर में भक्ति, प्रेम और उत्साह से स्वागत किया जाता है। चारों ओर ढोल-नगाड़ों की गूंज और भजन-कीर्तन की आवाज सुनाई देती है। यह त्योहार खास तौर पर महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन हर साल लोगों के मन में एक सवाल जरूर उठता है कि, गणपति बप्पा को घर में कितने दिन रखना चाहिए? शास्त्रों के अनुसार, यह परंपरा, आस्था और सुविधा पर निर्भर करती है। यही कारण है कि हर घर में अलग-अलग दिनों के लिए बप्पा की स्थापना होती है।

गणेश चतुर्थी और विसर्जन 2025 की तारीख
वैदिक पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि 26 अगस्त को दोपहर 01:54 बजे शुरू होगी और 27 अगस्त को दोपहर 03:44 बजे समाप्त होगी। हालांकि, उदयतिथि मान्य होती है इसलिए इस साल गणेश चतुर्थी का त्योहार 27 अगस्त बुधवार को मनाया जाएगा। हर साल गणेश विसर्जन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है। इस साल अनंत चतुर्दशी रविवार 7 सितंबर को होगी।
गणपति बप्पा को घर में रखने की परंपराएं
डेढ़ दिन के गणपति
कई परिवार बप्पा को डेढ़ दिन के लिए घर में रखते हैं। यह परंपरा छोटी, सरल और भावपूर्ण होती है। इसमें जल्दी विदाई देकर बप्पा से आशीर्वाद लिया जाता है और उन्हें अगले साल फिर से आमंत्रित करने का संकल्प लिया जाता है।
3 दिन के गणपति
कामकाजी परिवारों के लिए गणपति बप्पा को 3 दिन के लिए घर में रखने की अवधि सुविधाजनक होती है। 3 दिनों तक बप्पा की पूजा, भक्ति और प्रसाद के साथ त्योहार मनाने के बाद विसर्जन किया जाता है।
5 दिन के गणपति
मान्यता है कि गणपति बप्पा को 5 दिन घर लाने से सकारात्मकता और समृद्धि आती है। 5 दिन तक बप्पा घर में रहने से, परिवार और दोस्तों को आमंत्रित करने, पूजा करने और प्रसाद बांटने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।

7 दिन के गणपति
गणपति बप्पा का 7 दिन का प्रवास गहरी आस्था और समर्पण का प्रतीक है। पूरे हफ्ते के दौरान घर में भक्ति संगीत, पूजा और प्रसन्नता का वातावरण रहता है। इस परंपरा को ज्यादातर वे लोग निभाते हैं, जो पूरे दिल से उत्सव में डूबना चाहते हैं।
11 दिन के गणपति
गणेश चतुर्थी का सबसे पारंपरिक और भव्य रूप 11 दिन के गणपति हैं। बप्पा ग्यारह दिनों तक घर में और पंडाल में रहते हैं। इस परंपरा का महाराष्ट्र और कई राज्यों में पालन किया जाता है। आखिरी दिन, अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन से पहले पूरा समाज भक्ति, आनंद और एकता में डूब जाता है।
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