तुलसी की महक से क्यों प्रसन्न होते हैं पितृदेव? जानें श्राद्ध के महत्वपूर्ण नियम 

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धर्मशास्त्रों में श्राद्ध कर्म के दौरान तुलसी की अद्भुत महिमा का वर्णन किया गया है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी की सुगंध से पितृदेव अधिक प्रसन्न होते हैं। जब पितरों को तुलसी से पिंडदान किया जाता है, तो वे सदियों तक तृप्त रहते हैं। धर्मग्रंथों में इस विशेष महिमा का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, जो तुलसी को श्राद्ध कर्म का अभिन्न अंग माना गया है। श्राद्ध करते समय कुछ अन्य बातों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि पितरों की आत्मा को शांति मिले और श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति हो।

काले तिल का महत्व
तिल को देव अन्न के रूप में जाना जाता है।  काला तिल एक ऐसा पदार्थ है जिससे पितृगण प्रसंन्न होते हैं। इसलिए श्राद्धकर्म में हमेशा काले तिल का उपयोग करना चाहिए। काले तिल का दान और उनका श्राद्ध सामग्री में समावेश अत्यंत शुभ माना जाता है।

दिशा का ध्यान
श्राद्ध क्रिया हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ही करनी चाहिए। दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी जाती है और इस दिशा में मुख करके किए गए कर्म उन्हें सीधे प्राप्त होते हैं।

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आसन का महत्व
श्राद्ध कभी भी आसन के बिना नहीं करना चाहिए। कुशा के आसन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यदि कुशा का आसन उपलब्ध न हो, तो लकड़ी के पट्टे का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन उसमें लोहे की कील नहीं लगी होनी चाहिए। ऊन या रेशम के आसन का भी प्रयोग किया जा सकता है। 

श्राद्ध में पितरों को अर्पण करने के लिए कुछ खास अन्न और फलों को श्रेष्ठ माना गया है। इसमें तिल, जौ, सांवां, चावल, गेहूं, गाय का दूध और उससे बनी हुई वस्तुएं, मधु, चीनी, बेल, आंवला, अंगूर, कटहल, अनार, अखरोट, कसेरू, नारियल, खजूर, नारंगी, बेर, सुपारी, अदरक, जामुन, परवल, गुड़, कमलगट्टा, नींबू और पीपल जैसे शाक सब्जियों का समावेश होता है। ये सभी वस्तुएं श्राद्ध में अत्यंत प्रशस्त और पितरों को प्रिय कही गई हैं। इनके प्रमाण वायु पुराण, श्राद्धचंद्रिका, श्राद्धविवेक, श्राद्धप्रकार और श्राद्धकल्प जैसे धर्मग्रंथों में मिलते हैं। इस प्रकार, तुलसी के पत्ते, काले तिल, उचित दिशा और आसन का उपयोग करके श्रद्धापूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को संतोष प्रदान करता है और परिवार में सुख-शांति लाता है।

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