राहुल गांधी- जाति जनगणना: बिहार चुनाव में यह रणनीति कांग्रेस को वाकई फायदा दिला पाएगी?

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जाति जनगणना का लाभार्थी कौन और कब होगा, सामाजिक तौर पर ये सबसे बड़ा सवाल है। बिहार जैसे राज्य में जहां जातिगत समीकरण चुनावी नतीजों को तय करते हैं, राहुल गांधी की यह रणनीति कितना असर बिहार चुनाव में  दिखा पाएगी, यह सवाल पूरे बिहार के राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है। बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले जाति जनगणना का मुद्दा एक बार फिर चरम है, और कांग्रेस इसे भुनाने की पूरी कोशिश में है। लेकिन बिहार चुनाव में यह रणनीति कांग्रेस को वाकई फायदा दिला पाएगी?
राहुल गांधी लंबे समय से जाति जनगणना की मुद्दे को उठाते रहते हैं। 2023 में बिहार सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण के बाद, जिसमें यह खुलासा हुआ कि राज्य में ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय की आबादी 84% है, कांग्रेस ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया। उन्होंने तर्क दिया कि देश में जाति के आंकड़े को जानना जरूरी है ताकि आबादी के हिसाब में अधिकार और संसाधन दिए जा सकें। जो कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा बन गया। हाल ही में नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के जाति जनगणना के फैसले का स्वागत तो किया, लेकिन इसकी समयसीमा और पारदर्शिता पर सवाल भी उठाए। उन्होंने 50% आरक्षण की सीमा हटाने और निजी शैक्षणिक संस्थानों में कोटा लागू करने की मांग भी दोहराई।

बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा बहुत अहम है। यहां जातिगत समीकरण ही चुनावी जीत-हार तय करते हैं। 2023 के सर्वेक्षण के बाद से बिहार में ओबीसी और अन्य पिछड़े समुदायों की सियासी ताकत बढ़ी है। कांग्रेस, जो राष्ट्रीय जनता दल - वाम दलों के साथ गठबंधन में है, इस मुद्दे को भुनाकर नीतीश कुमार की जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को चुनौती देना चाहती है।   बीजेपी ने हाल ही में घोषणा की कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति गणना शामिल होगी, जिसे विपक्ष ने अपनी जीत करार दिया है। लेकिन बीजेपी इसे अपने पक्ष में पूरी तरह भुनाने की कोशिश में है, खासकर बिहार में जहां नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी आई है।

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राहुल गांधी की रणनीति का असर कितना होगा

आरजेडी के साथ गठबंधन के बावजूद, कांग्रेस की जमीन पर पकड़ उतनी मजबूत दिखती नहीं है जितनी बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को दिख रही है। दूसरा, बीजेपी ने इस मुद्दे को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, जिससे कांग्रेस की नैरेटिव को कमजोर करने का खतरा है। तीसरा, बिहार की जनता के बीच जाति जनगणना का मुद्दा कितना प्रभावी होगा, यह भी सवाल है। 

बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब उसने जाति जनगणना क्यों नहीं कराई। बीजेपी के राज्य महासचिव रामा श्रीनिवासन ने हाल ही में तमिलनाडु में यह सवाल उठाया था, जिसका जवाब कांग्रेस को देना होगा। अगर कांग्रेस इस मुद्दे को सही ढंग से उठा सकती है और इसे जमीन तक ले जा सकती है, तो बिहार में उसे इसका फायदा मिल सकता है। लेकिन अगर बीजेपी इसे अपने पक्ष में कर लेती है, तो राहुल गांधी की यह रणनीति उलटी भी पड़ने की संभावन है।
राहुल गांधी की जाति जनगणना की रणनीति कांग्रेस के लिए एक मौका तो है, लेकिन यह चुनौतियों से भरी हुई है। बिहार चुनाव में इसका असर कितना होगा, यह आने वाले दिनों में ही साफ हो पाएगा। फिलहाल, जाति जनगणना मुद्दा सियासी बहस का केंद्र बना हुआ है।

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