सूरत पुलिस एक्शन मोड में, बांग्लादेशियों का बायोमेट्रिक डेटाबेस तैयार हो रहा, दोबारा लौटे तो तुरंत पकड़े जाएंगे

डिपोर्ट करने की चल रही तैयारी, वर्षों से सूरत में अवैध तरीके से रह रहे

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सूरत। पहलगाम हमले के बाद से पूरे गुजरात में अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ कार्रवाई चल रही है। अहमदाबाद में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की गई है। वहीं, सूरत पुलिस ने अब तक 233 संदिग्ध बांग्लादेशियों को हिरासत में लिया है। इनमें से लगभग 180 की पहचान हो चुकी है। अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले इन बांग्लादेशियों को डिपोर्ट करने की तैयारी चल रही है। यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि वह दोबारा से भारत न सकें। लेकिन अगर आने की कोशिश भी करें तो उनकी पहचान तुरंत की जा सकें। इसके लिए सूरत पुलिस अब टेक्नोलॉजी की मदद लेगी। इसके अनुसार एक बायोमेट्रिक डाटाबेस तैयार किया जाएगा। इसके अलावा उना क्षेत्र से पकड़े गए 70 से अधिक बांग्लादेशियों के जिन स्थानों से उन्हें पकड़ा गया, वह जमीन सरकारी है या नहीं, इसका भी पता लगाया जा रहा है। 

सूरत पुलिस एक्शन मोड में आ गई है

बता दें कि सूरत शहर में अब तक पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में सबसे अधिक बांग्लादेशी शहर के उना क्षेत्र में स्थित बंगाली बस्ती से मिले हैं। इस बस्ती में इस्माइलनगर और शायरानगर शामिल हैं। लगभग 70 बांग्लादेशियों को इसी क्षेत्र से पकड़े जाने के बाद अब पुलिस एक्शन मोड में आ गई है। यह बंगाली बस्ती अवैध है या वैध, यह जानने के लिए सूरत महानगर पालिका को पत्र लिखा गया है। सबसे अहम बात यह है कि यह बस्ती खाड़ी (सागर) के पास स्थित है, जिससे पुलिस को संदेह है कि यह सरकारी जमीन हो सकती है। 

वर्षों से रह रहे 40 बांग्लादेशियों के पास कोई दस्तावेज नहीं

बता दें कि बंगाली बस्ती से पकड़े गए लगभग 40 बांग्लादेशियों के पास कोई भी दस्तावेज नहीं हैं। सूरत पुलिस की कार्रवाई में उना क्षेत्र की बंगाली बस्ती से लगभग 100 संदिग्ध व्यक्ति मिले, जिनमें से करीब 60 लोग बांग्लादेशी निकले। इनमें से लगभग 40 लोगों के पास आधार कार्ड समेत कोई भी दस्तावेज या प्रमाण नहीं है और वे कई वर्षों से वहीं रह रहे थे।

डिपोर्ट करने के बाद भी फिर लौट आते हैं

यह भी देखने में आया है कि पहले डिपोर्ट किये गए बांग्लादेशी फिर से सूरत लौट आए। इसलिए फिर ऐसा न हो, इसके लिए सूरत पुलिस अब सभी पकड़े गए बांग्लादेशियों का डेटाबेस तैयार करेगी। इसमें टेक्नोलॉजी की सहायता ली जाएगी। जिससे यदि ये लोग डिपोर्ट होने के बाद दोबारा भारत आएं, तो तकनीक के माध्यम से तुरंत उनकी पहचान हो सकेगी कि वे बांग्लादेशी हैं या नहीं। इसके लिए बायोमेट्रिक पद्धति अपनाई जाएगी।

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