कांग्रेस के जाल और चाल में फंस गए जगदीप धनखड़, जानिए उनके इस्तीफे की असली वजह

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भारतीय राजनीति में कुछ लोगों के लिए संकट का समय दूसरों के लिए अवसर बन जाता है। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से विपक्षी दलों को ऐसा ही एक मौका मिल गया है। अब यह मुद्दा संसद के गलियारों में गरमा गया है। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल इस घटनाक्रम को केंद्र सरकार पर हमला बोलने के एक मौके के तौर पर देख रहे हैं। जहां पहले विपक्ष धनखड़ को 'सरकार की कठपुतली' कहता था, वहीं अब विपक्ष उन्हें 'संविधान के रक्षक' के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और समाजवादी पार्टी (सपा) ने उनके अचानक इस्तीफे पर सवाल उठाए हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पूरे अध्याय में कई राज छिपे हैं, जो अब धीरे-धीरे सामने आ सकते हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मंगलवार को दिल्ली में विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' की बैठक हुई, लेकिन तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इसमें हिस्सा नहीं लिया, हालांकि उसके सांसद दिल्ली में मौजूद थे। इसकी सीधी वजह धनखड़ के प्रति तृणमूल की पुरानी नाराज़गी बताई जा रही है। टीएमसी धनखड़ के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने को तैयार थी, लेकिन कांग्रेस के दो सांसदों के हस्ताक्षरों की जालसाज़ी के कारण यह प्रस्ताव खारिज हो गया। तृणमूल कांग्रेस के पदाधिकारियों का दावा है कि यह सब जानबूझकर किया गया, ताकि धनखड़ को बचाया जा सके। टीएमसी इस बात से बेहद नाराज़ है और कांग्रेस पर अविश्वास जता रही है।

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दूसरी ओर ऐसी खबरें हैं कि कांग्रेस दो महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहती थी - 'एक जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़' और 'दूसरा जस्टिस यादव के ख़िलाफ़।' धनखड़ ने पार्टी नेताओं को आश्वासन दिया कि वह इस पर गौर करेंगे, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार खड़गे और केजरीवाल की बैठकों को लेकर ख़ास चिंतित नहीं थी, लेकिन जब धनखड़ ने दोहरे महाभियोग प्रक्रिया में रुचि दिखाई तो सरकार सतर्क हो गई। एनडीए की योजना लोकसभा और राज्यसभा दोनों में एक साथ मतदान कराने की थी। जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई के रूप में पेश किया जा रहा था, जिसका श्रेय सरकार विपक्ष को नहीं देना चाहती थी।

हालांकि, कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का रुख एक जैसा दिख रहा है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस अभी भी कांग्रेस से नाराज़ है। उनका मानना है कि कांग्रेस ने जानबूझकर महाभियोग प्रस्ताव को विफल किया और उस व्यक्ति का साथ दिया जिसे वह वर्षों से 'सरकार का आदमी' कहती आ रही है।

धनखड़ के इस्तीफे पर कांग्रेस ने तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त की। जयराम रमेश, प्रियंका चतुर्वेदी और तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी नेताओं ने केंद्र सरकार पर हमला बोला। विपक्ष का मानना है कि सरकार की तुलना में धनखड़ एक 'छोटा दुश्मन' हैं, लेकिन असली निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। कांग्रेस का मकसद यह साबित करना है कि भाजपा अपने भीतर किसी भी तरह की असहमति बर्दाश्त नहीं करती। पार्टी पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का उदाहरण देकर यह साबित करने की कोशिश कर रही है।

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कांग्रेस की रणनीति साफ है। वह चाहता है कि अगर धनखड़ अभी सरकार के खिलाफ कुछ कहें, तो विपक्ष को एक बड़ा हथियार मिल सकता है। हालांकि, जानकारों का कहना है कि सरकार भी इस चाल को समझ चुकी है और इसका जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है। भारत-नेपाल गठबंधन ने दोहराया कि जम्मू-कश्मीर देश का अभिन्न अंग है और इसकी संप्रभुता पर सवाल उठाने की कोई भी कोशिश अस्वीकार्य है। इसने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सिंधु जल संधि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का विषय नहीं है।

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