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- यही सत्य है... राजनेता बयानबाजी करेंगे, सोशल मीडिया पर चर्चा होगी और दुखद घटनाएं भुला दी जाएंगी
यही सत्य है... राजनेता बयानबाजी करेंगे, सोशल मीडिया पर चर्चा होगी और दुखद घटनाएं भुला दी जाएंगी

हमारा देश भारत जिसकी गरिमा और विविधता की प्रशंसा पूरी दुनिया में होती है, आज एक जटिल प्रश्न के चौराहे पर खड़ा है। क्या हमें बुद्ध के शांति के मार्ग पर चलना चाहिए या युद्ध की तैयारी के साथ आगे बढ़ना चाहिए? यह प्रश्न केवल राजनीतिक या सामाजिक नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक मुद्दा है जो हर भारतीय के दिल को छूता है। आज जब आतंकवाद की काली छाया देश की सुरक्षा को चुनौती दे रही है, तो इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि हमने क्या खोया, क्या पाया और आखिर हम कहां जा रहे हैं?
भारत की धरती सदियों से शांति, संस्कृति और आध्यात्म का प्रतीक रही है। बुद्ध का अहिंसा का संदेश आज भी हमारे देश की पहचान का अभिन्न अंग है। लेकिन आज के समय में शांति की इस धरती पर लगातार हो रहे आतंकी हमले, निर्दोष नागरिकों की हत्याएं और जवानों की शहादत ने हमें दुविधा में डाल दिया है। इन घटनाओं के बाद नेताओं के बयान, सोशल मीडिया पर चर्चा और मीडिया का शोर कुछ दिनों के लिए हमारे दुख को कम कर देता है लेकिन फिर सब शांत हो जाता है। दुखद घटनाएं भूल जाती हैं और देश फिर से अपनी धुन में गूंजने लगता है। लेकिन क्या इस चक्र से बाहर निकलने का समय नहीं आ गया है?
आतंकवाद केवल एक बाहरी खतरा नहीं है, यह एक ऐसा जहर है जो हमारे समाज की एकता, शांति और विश्वास को नष्ट करता है। हर हमले के बाद नेताओं के कड़े शब्द और "हम आतंकवाद को खत्म करेंगे" जैसे वादे हमें थोड़ी राहत देते हैं लेकिन हकीकत यह है कि ये बयान सिर्फ शब्दों का खेल बनकर रह जाते हैं। सोशल मीडिया पर चर्चाएं भावनात्मक उफान लाती हैं लेकिन क्या वाकई इन चर्चाओं से कोई ठोस नतीजा निकलता है? हमारे देश के नागरिकों का गुस्सा कुछ दिनों में शांत हो जाता है और हम फिर से उसी चक्र में फंस जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? क्या हम अपने ही देश में असुरक्षित हैं?
इन सवालों के जवाब खोजने के लिए हमें अपनी सुरक्षा व्यवस्था, राजनीतिक इच्छाशक्ति और समाज की जागरूकता पर गौर करना होगा। आतंकवाद से निपटने के लिए सिर्फ शब्द या नीतियां ही काफी नहीं हैं, एक ठोस योजना, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सामाजिक एकता की जरूरत है। हमारे सैनिक हर दिन सीमाओं पर अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं, लेकिन क्या हम उनके बलिदान का सही मूल्य समझते हैं? क्या हमारी सरकारें अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभा रही हैं?
यह सब खोने के बाद हमने क्या पाया? शायद हमने एकता, देशभक्ति का जज्बा और फिर से उठ खड़े होने का साहस पाया है। लेकिन इतना ही काफी नहीं है। हमें एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जो आतंकवाद की जड़ तक पहुँचे, युवाओं को भटकने से रोके और हर नागरिक को सुरक्षा सुनिश्चित करे। इसके लिए बुद्ध की शांति और युद्ध की तैयारी दोनों का संतुलन ज़रूरी है। बुद्ध का संदेश हमें समाज में एकता और करुणा लाने की प्रेरणा देता है, जबकि युद्ध हमें बाहरी खतरों से बचाता है।
आज देश की सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह देश की सुरक्षा के लिए सजग रहे और आतंकवादियों को खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास करे। हमें राजनीतिक बयानों और सोशल मीडिया के शोर से परे जाकर ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। सरकार, समाज और नागरिक सभी को मिलकर काम करना होगा। हमें एक ऐसा देश बनाना होगा जहाँ हर नागरिक सुरक्षित महसूस करे, जहाँ आतंकवाद का कोई डर न हो।
अब समय आ गया है कि हम तय करें कि इस लड़ाई को और आगे बढ़ाया जाए या एक झटके में खत्म कर दिया जाए। यह समय यह स्पष्ट करने का है कि यह नीति है या युद्ध, बयानबाजी में समय बर्बाद करने का नहीं।
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