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सीजेआई बोले- हमारा देश कानून के शासन से चलता है, बुलडोजर से नहीं

नई दिल्ली। भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था कानून के शासन से चलती है। इसमें बुलडोजर एक्शन की जगह नहीं है। दरअसल, जस्टिस गवई मॉरीशस में आयोजित सर मॉरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर में ये बातें बोल रहे थे। मुख्य न्यायाधीश ने इस दौरान महात्मा गांधी और बीआर अंबेडकर का हवाला देते हुए न्यायसंगत और अन्यायपूर्ण कानून के बीच अंतर बताया। सीजेआई ने कहा कि यह याद रखना चाहिए कि किसी चीज को कानूनी मान्यता मिलने का मतलब यह नहीं है वह न्यायसंगत है। इतिहास इस दर्दनाक सच्चाई के अनगिनत उदाहरण पेश करता है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल के फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया था कि किसी आरोपी के खिलाफ बुलडोजर चलाना कानून की प्रक्रिया को तोड़ना है। जस्टिस गवई ने कहा कि सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती। बुलडोजर शासन संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार) का उल्लंघन है। उनके लेक्चर के दौरान मॉरीशस के राष्ट्रपति धरमबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और मुख्य न्यायाधीश रेहाना मंगली गुलबुल भी मौजूद थे।
सीजेआई ने तीन तलाक, चुनावी बॉन्ड स्कीम का भी जिक्र किया
जस्टिस बीआर गवई ने तीन तलाक खत्म करने, व्यभिचार कानून को निरस्त करने, चुनावी बॉन्ड स्कीम और निजता को मौलिक अधिकार मानने जैसे फैसलों का भी जिक्र किया। गव
ई ने कहा कि इन सभी फैसलों ने दिखाया कि अदालत ने कानून का शासन को एक ठोस सिद्धांत बनाया है, जिससे मनमाने और अन्यायपूर्ण कानून खत्म किए गए। उन्होंने कहा कि भारत में कानून का शासन केवल नियमों का सेट नहीं है, बल्कि यह नैतिक और सामाजिक ढांचा है, जो समानता, गरिमा और सुशासन सुनिश्चित करता है। उन्होंने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान का हवाला देते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण बताता है कि लोकतंत्र में कानून का राज ही समाज को न्याय और जवाबदेही की ओर ले जाता है।
बुलडोजर एक्शन के खिलाफ आदेश देने पर संतुष्टि मिली
बता दें कि सीजेआई गवई ने 24 सितंबर को कहा था कि बुलडोजर एक्शन के खिलाफ आदेश देने पर उन्हें बेहद संतुष्टि मिली थी। इस फैसले में मानवीय पहलू भी जुड़ा था। किसी परिवार को सिर्फ इसलिए परेशान नहीं किया सकता कि उस परिवार का एक सदस्य अपराधी है। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 में बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि अफसर जज नहीं बन सकते। वे तय न करें कि दोषी कौन है। अदालत ने इसको लेकर 15 गाइडलाइंस भी दीं थीं।
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