क्या वाकई में चातुर्मास में सोते हैं भगवान विष्णु? जानिए क्या है वैज्ञानिक कारण

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सनातन परंपरा में व्रत, त्योहार और विभिन्न तिथियों के अनुसार जीवनशैली का पालन महत्वपूर्ण माना जाता है। ये प्रथाएं हमारे जीवन को तपस्या और भोग के बीच संतुलन सिखाती हैं। हालांकि, आधुनिक जीवनशैली में हम न केवल इन परंपराओं से दूर हो गए हैं, बल्कि उनके वास्तविक उद्देश्यों को भी भूल चुके हैं। आज व्रत-त्योहार अक्सर केवल आयोजनों तक सीमित रह गए हैं, जबकि उनके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

चातुर्मास में भी ऐसे कई व्रत-त्योहार पड़ते हैं, जिसका लोग विधि-विधान से पालन करते हैं। चातुर्मास को लेकर लोगों में यह धारणा है कि इस दौरान भगवान विष्णु चार महीनों के लिए पाताल लोक में सोने के लिए चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव संभालते हैं। इस दौरान विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन क्या इन सब  परहेजों के पीछे केवल धार्मिक मान्यताएं हैं, या कोई वैज्ञानिक आधार भी है?

परंपरा के पीछे का विज्ञान

आयुर्वेद के अनुसार, इन परंपराओं का सीधा संबंध ऋतु परिवर्तन और स्वास्थ्य से है। चातुर्मास का समय वर्षा ऋतु में आता है, जो लगभग चार महीने तक रहता है। इस दौरान वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिससे शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। जैसे गैस, भारीपन और पाचन से जुड़ी समस्याएं बढ़ जाती हैं।

इसी कारण से इस समय तला-भुना, मांसाहार और भारी भोजन खाने से परहेज किया जाता है। आषाढ़ मास की हरिशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है और कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी पर समाप्त होता है। इस दौरान व्रत और उपवास रखा जाता है, ताकि लोग हल्का और सात्विक भोजन करें, जिससे शरीर को आराम मिल सके।

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भगवान विष्णु और पाचन अग्नि का संबंध

भगवान विष्णु के सहस्रनामों में एक प्रमुख नाम है – वैश्वानर, ऋग्वेद में अग्नि को भी वैश्वानर कहा गया है।  भगवद्गीता के 15वें अध्याय के 14वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं- "अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः। प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्॥" यानी "मैं वैश्वानर अग्नि हूं और सभी प्राणियों के शरीर में निवास करता हूं। प्राण और अपान वायु के साथ मिलकर मैं चार प्रकार के भोजन को पचाता हूं। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि पाचन अग्नि ही दिव्य ऊर्जा का रूप है, जो भगवान की उपस्थिति का प्रतीक है। इसी कारण चातुर्मास में पाचन को संतुलित रखने के लिए सात्विक आहार और उपवास का महत्व बताया गया।

वाकई सोते हैं भगवान?
चातुर्मास में भगवान विष्णु के सोने की मान्यता प्रतीकात्मक है। इसका अर्थ यह है कि वर्षा ऋतु में प्रकृति और शरीर दोनों विश्राम की अवस्था में रहते हैं. इस समय भारी और तामसिक कार्यों से बचकर साधना और सात्विक जीवन अपनाने का संदेश दिया गया है। धार्मिक दृष्टि से इसे विष्णु की 'योगनिद्रा' बताया जाता है, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह शरीर को रोगों से मुक्ति और पाचन तंत्र को सही करने का एक प्रभावी उपाय है।

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