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क्या विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी का वनवास खत्म होगा या हाशिये पर ही रहेंगे?

सूरत पश्चिम विधानसभा सीट से भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व कैबिनेट मंत्री पूर्णेश मोदी राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बन गए हैं। उनका राजनीतिक सफर, विवाद और भाजपा की आंतरिक राजनीति में उनकी स्थिति एक जटिल लेकिन दिलचस्प विषय है। क्या वह राज्य की राजनीति में फिर से प्रभावशाली स्थान हासिल कर पाएँगे या हाशिये पर ही रहेंगे? यह सवाल इन दिनों सूरत भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच बहस का विषय बना हुआ है।
पूर्णेश मोदी ने 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में सूरत पश्चिम सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। 2021 में, उन्हें भूपेंद्र पटेल सरकार में सड़क एवं आवास विभाग का कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्होंने गांधीनगर नगर निगम चुनाव में भाजपा के वार्ड क्रमांक 07 (वावोल-कोलवाड़ा) में प्रचार की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभाई, जहाँ भाजपा उम्मीदवारों ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। इसके अलावा, विश्व हिंदू परिषद और संघ परिवार के संगठनों से उनके घनिष्ठ संबंध हैं और सूरत की गणेश उत्सव समितियों में उनकी सक्रिय भूमिका है, जिसके कारण सामाजिक और धार्मिक संगठनों पर उनकी पकड़ मज़बूत रही है।
हालांकि, पूर्णेश मोदी का राजनीतिक सफ़र विवादों से अछूता नहीं रहा है। वह सबसे ज़्यादा चर्चा में राहुल गांधी के ख़िलाफ़ मानहानि के मुक़दमे को लेकर रहे थे। जिसमें उन्होंने "मोदी उपनाम" पर राहुल गांधी की टिप्पणी को लेकर उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की थी। इस मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा और पूर्णेश मोदी की एक निडर नेता के रूप में छवि उभरी। इसके अलावा, गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल (सी.आर. पाटिल) के साथ उनके मतभेद लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं। ये मतभेद भाजपा की आंतरिक गुटबाज़ी की ओर भी इशारा करते हैं जो पूर्णेश मोदी के राजनीतिक भविष्य को प्रभावित कर रही है।
फ़िलहाल, पूर्णेश मोदी का "राजनीतिक वनवास" यानी सरकार या संगठन में किसी महत्वपूर्ण पद से विहीन होना चर्चा का केंद्र है। भाजपा की आंतरिक राजनीति में सी.आर. पाटिल का दबदबा और पूर्णेश मोदी की सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं से निकटता उनकी वापसी की संभावनाओं को जटिल बना रही है। भाजपा नेतृत्व उनके सामाजिक प्रभाव और लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दे या प्रदेश संगठन में कोई अहम ज़िम्मेदारी दे, यह एक बड़ा सवाल है। हालांकि, पाटिल के साथ पुराने मतभेद और पार्टी की मौजूदा रणनीति उनकी संभावनाओं में बाधा बन सकती है।

दूसरी ओर, सूरत जैसे शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की मज़बूत पकड़ और स्थानीय स्तर पर पूर्णेश मोदी की लोकप्रियता उनके लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है। सामाजिक संस्थाओं के साथ उनकी सक्रियता और गणेश उत्सव जैसे आयोजनों में उनकी भूमिका उन्हें एक बड़े समुदाय के संपर्क में रखती है। उनका राजनीतिक भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि भाजपा नेतृत्व आने वाले समय में उनकी क्षमताओं का कैसे उपयोग करता है। अगर पार्टी उनकी सामाजिक और राजनीतिक पूंजी का लाभ उठाना चाहती है, तो उन्हें मंत्री पद या संगठन में कोई महत्वपूर्ण पद दिया जा सकता है। लेकिन अगर आंतरिक राजनीति और गुटबाज़ी हावी रही, तो उनका वनवास लंबा खिंच सकता है।
कुल मिलाकर, पूर्णेश मोदी का राजनीतिक भविष्य भाजपा की आंतरिक रणनीति और सी.आर. पाटिल के साथ समीकरणों पर निर्भर करता है। उनकी सक्रियता और अनुभव को देखते हुए, उनकी वापसी संभव है, लेकिन इसके लिए पार्टी के भीतर समीकरणों का संतुलन ज़रूरी होगा।
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