सालासर बालाजी मंदिर : यहां दाढ़ी मूंछों के साथ विराजमान हैं हनुमान जी, जानिए क्यों है इतना खास यह मंदिर 

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भारत का यह ऐसा एकमात्र मंदिर है जहां पर दाढ़ी-मूंछ वाले बालाजी यानी हनुमान जी यहां विराजमान हैं। सालासर बालाजी मंदिर जो राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। हनुमान जी इस अनोखे स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है। सालासर बालाजी मंदिर जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है और रोजाना हजारों की संख्या में भक्त यहां दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की विशेषता और आध्यात्मिक महत्व के कारण यहां देशभर से श्रद्धालु सालासर बालाजी मंदिर दर्शन के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो भी भक्त बालाजी में अपनी समस्या लेकर आता है, उसकी समस्या का समाधान कुछ ही दिनों में हो जाता है। 

क्या है बालाजी मंदिर का इतिहास 

सालासर बालाजी मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक प्राचीन कथा है, जो इस मंदिर को और भी विशेष बनाती है। वर्ष 1811 में आसोटा गांव में एक किसान, मोहनदास, खेत में हल चला रहा था। हल चलाते समय उसका हल किसी नुकीली चीज से टकरा गया। जब मोहनदास ने उस चीज को निकालकर देखा, तो वह हनुमान जी की एक मूर्ति थी। उस समय मोहनदास दोपहर के भोजन में चूरमा लेकर आए थे, इसलिए उसने मूर्ति को चूरमा का भोग लगाया।

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रात में मोहनदास को हनुमान जी का सपना आया, इस सपने में हनुमान जी दाढ़ी-मूंछ में मोहनदास को दिखाई दिए। हनुमान जी ने मोहनदास से कहा कि वह मूर्ति को बैलगाड़ी में रखकर उस स्थान पर स्थापित कर दे, जहां बैलगाड़ी अपने आप रुक जाए। मोहनदास ने हनुमान जी के निर्देशानुसार मूर्ति को बैलगाड़ी में रखा और चल पड़ा। वर्तमान में जहां सालासर बालाजी मंदिर स्थित है, वहीं पर बैलगाड़ी रुकी थी। मोहनदास ने मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया और हनुमान जी की दाढ़ी-मूंछ वाले रूप को ध्यान में रखते हुए मूर्ति का श्रृंगार किया।

सालासर धाम में हर साल दो मेले लगते हैं। एक मेला शरद पूर्णिमा और दूसरा मेला हनुमान जयंती पर आयोजित होता है  इन मेलों के दौरान मंदिर परिसर में धार्मिक किताबें, हनुमान जी से जुड़े प्रतीक और अन्य आध्यात्मिक सामग्री बेची जाती है। साथ ही, यहां चूरमा जैसे प्रसाद भी मिलते हैं, जो मंदिर की परंपरा का हिस्सा हैं। दोनों मेलों में देश-विदेश से भक्त बड़ी संख्या में दर्शन करने के लिए आते हैं, जिससे मंदिर का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व और बढ़ जाता है।。

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200 सालों से नारियल चढ़ाने की परंपरा

सालासर बालाजी में नारियल चढ़ाने का बहुत महत्व है। यहां करीब 200 सालों से एक परंपरा चली आ रही है। सालासर बालाजी मंदिर परिसर में लगे खेजड़ी के एक पेड़ पर लाल कपड़े में नारियल बांधे जाते हैं। लोग अपनी मनोकामना को बालाजी महाराज से पूरी कराने के लिए यहां नारियल चढ़ाते हैं। सबसे खास बात यह है कि इन नारियलों को न ही कहीं फेंका जाता है और न ही जलाया जाता है।  इन नारियलों को सालासर बालाजी मंदिर से करीब 11 किलोमीटर दूर मुरड़ाकिया गांव के पास 250 बीघा खेत में गड्ढा खोदकर दबा दिया जाता है। यह परंपरा मंदिर की पवित्रता और भक्तों की श्रद्धा को दर्शाती है।

मंदिर तक पहुंचने के रास्ते

सालासर बालाजी मंदिर तक पहुंचना काफी आसान है, और विभिन्न स्थानों से यहां आने के लिए कई रूट उपलब्ध हैं। यदि आप दिल्ली-एनसीआर या हरियाणा से आ रहे हैं, तो आपको सीधे बस मिल जाएगी। ट्रेन से आने पर नजदीकी रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ है, जो सालासर बालाजी से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सुजानगढ़ से आप बस या टैक्सी लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं। यदि आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं, तो नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर है, जो सालासर गांव से 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जयपुर से आप सड़क मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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