लग्जरी घरों की चकाचौंध में गायब हो रहे हैं किफायती मध्यम वर्ग के घर, लोगों के लिए घर खरीदना बड़ी चुनौती

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भारत में मिडिल क्लास के लिए घर का सपना फीका पड़ रहा है। अब बड़े शहरों में किफायती घर मिलने की गुंजाइश कम होती जा रही है। जबकि लग्जरी फ्लैट्स की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। लोगों की आय और घर की कीमतों के बीच का अंतर और बढ़ता जा रहा है। 2020-2024 के बीच के चार सालों में भारत में घरेलू आय सिर्फ 5.4 फीसदी की दर से बढ़ी है, जबकि प्रॉपर्टी की कीमतें 9.3 फीसदी की दर से बढ़ रही हैं। 

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प्रॉपर्टी एडवाइजरी फर्म फिनोलॉजी के मुताबिक, यह अंतर सिर्फ गरीबों के लिए ही नहीं बल्कि मिडिल क्लास के लिए भी घर पाना मुश्किल बना रहा है। रियल एस्टेट मार्केट में बदलाव साफ तौर पर दिख रहा है। 2022 में जहां किफायती घरों की कीमत 3.1 लाख रुपये थी, वहीं 2024 में यह संख्या 36 फीसदी घटकर 1.98 लाख रुपये रह गई। दूसरी तरफ, लग्जरी घरों की आपूर्ति में उछाल आया है।

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दिल्ली-एनसीआर में 192 फीसदी, बेंगलुरु में 187 फीसदी और चेन्नई में 127 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। सबसे ज्यादा प्रभावित वे शहर हैं, जहां पहले काफी दबाव था। हैदराबाद में किफायती घरों की संख्या में 69 फीसदी की कमी आई है। मुंबई में 60 फीसदी और एनसीआर में 45 फीसदी, कोलकाता एकमात्र ऐसा शहर है, जहां किफायती घरों में महज 7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

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कोई घर किफायती है या महंगा, इसका निर्धारण परिवार की आय के उस अनुपात के आधार पर होता है, जो लोन में जाता है। अगर किसी की आय का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा लोन में जाता है, तो इसका मतलब है कि वह घर अफोर्डेबल नहीं है। यहां आपको बता दें कि डेवलपर्स अक्सर सरकारी सर्किल रेट कम दिखाकर बिक्री मूल्य कम घोषित करते हैं और बाकी रकम नकद लेते हैं, जिससे टैक्स बचता है और घरों की दरें बढ़ जाती हैं।

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इसके अलावा, भारत का कम फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) आपूर्ति में बाधा पैदा करता है। मुंबई में 542 ऊंची इमारतें हैं, जबकि सिंगापुर में 2600 से ज्यादा हैं। टोक्यो, न्यूयॉर्क और दिल्ली में भी ज्यादा इमारतें बनाने की अनुमति है। रियल एस्टेट सेक्टर में इस समस्या को खत्म करने के लिए हर महीने सर्किल रेट में बदलाव, रेरा के जरिए सेंट्रलाइज्ड डिजिटल प्लेटफॉर्म, खाली पड़े मकानों पर वैकेंसी टैक्स लगाना और एनआरआई निवेश को रेगुलेट करना जरूरी है। इस बीच सरकार को छोटे शहरों में भी मकानों की आपूर्ति बढ़ाने की जरूरत है।

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