भीषण गर्मी से भगवान जगन्‍नाथ भी हुए बेहाल, स्नान पूर्णिमा पर करेंगे 108 मटकों से स्नान

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हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ की पूजा का विशेष महत्व है, जो भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र हैं। भगवान जगन्‍नाथ भी इन दिनों पड़ रही भीषण गर्मी से बेहाल हैं। स्‍नान पूर्णिमा यानी कि ज्‍येष्ठ मास का पूर्णिमा पर उन्‍हें 108 स्‍वर्ण कलशों के जल से स्‍नान करवाया जाएगा। भगवान जगन्‍नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम को स्‍नान करवाने की यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

स्नान पूर्णिमा का उत्सव सूर्योदय से आधी रात तक चलता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम को विशेष रूप से तैयार किए गए 108 स्वर्ण कलशों से जल से स्नान कराया जाता है। यह जल विभिन्न  नदियों और कुओं से एकत्र किया जाता है, जिसे शुद्ध करने के बाद मंदिर के पुजारियों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। स्नान के दौरान मंदिर को आम भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है, ताकि यह पवित्र अनुष्ठान बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो सके। यह परंपरा 200 वर्षों से चली आ रही है और इसे हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है।

भगवान को स्नान के बाद हाथी की पोशाक पहनाई जाती है, जो उनके शाही और अलौकिक स्वरूप को दर्शाता है। हालांकि, मान्यता है कि इतने बड़े पैमाने पर स्नान के कारण भगवान बीमार पड़ जाते हैं। इसके बाद अगले 15 दिनों तक उन्हें औषधीय काढ़ा और फलों का रस दिया जाता है।  मान्यता है कि जो भक्त इस काढ़े को 14 दिनों तक नियमित रूप से ग्रहण करते हैं, उन्हें पूरे साल रोगों से मुक्ति मिलती है।

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भगवान जगन्नाथ को स्नान के बाद मंदिर के एक विशेष कमरे में ले जाया जाता है। इस दौरान मंदिर के कपाट भक्तों के लिए बंद रहते हैं, और भगवान की सेवा पुजारियों द्वारा की जाती है। यह अवधि 15 दिनों तक चलती है, और इस दौरान भक्त भगवान के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। इस दौरान भगवान के दर्शन नहीं होते। पुराणों के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनवाने का संकल्प लिया था। शिल्पकार ने मूर्ति को अधूरा छोड़ दिया, जिससे राजा चिंतित हो गए। तब भगवान ने स्वयं राजा को दर्शन दिए और कहा कि वे नारद को दिए गए वचन के अनुसार बालक रूप में पृथ्वी पर विराजमान होंगे। उन्होंने राजा को आदेश दिया कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन 108 घड़ों के जल से उनका अभिषेक किया जाए। इस घटना के बाद से यह परंपरा प्रारंभ हुई। 

15 दिनों के एकांतवास के बाद भगवान पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर मंदिर से बाहर निकलते हैं। इसके बाद ज्येष्ठ मास की अमावस्या को भव्य रथ यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम अपने भव्य रथों पर सवार होकर भक्तों के दर्शन के लिए निकलते हैं। यह रथ यात्रा मौसी के घर तक जाती है, जहां भगवान कुछ दिन ठहरते हैं। रथ यात्रा भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है, और लाखों लोग इसमें शामिल होते हैं।

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