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चातुर्मास 5 महीने का होता है, लेकिन इसे चार महीने क्यों कहा जाता है?

हिंदू धर्म में चातुर्मास का समय बहुत पवित्र माना जाता है। यह वह समय होता है जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं द्वारा किया जाता है, लेकिन अधिकांश लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि जब चातुर्मास की अवधि लगभग 5 महीने की होती है, तो इसे 'चार' महीने (अर्थात चार महीने) क्यों कहा जाता है?
चातुर्मास क्या है?
चातुर्मास शब्द 'चतु' (चार) और 'मास' (महीना) से मिलकर बना है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी तक चलता है। इन दोनों एकादशियों के बीच की अवधि लगभग 148 दिनों से 150 दिनों तक होती है, जो लगभग 5 महीने होती है।

चार महीने कहने का कारण
सौर और चंद्र गणना में अंतर: हिंदू पंचांग चंद्र मास पर आधारित है, जबकि वर्ष की गणना सौर वर्ष के अनुसार की जाती है। इन दोनों गणनाओं के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए, हर तीसरे वर्ष एक अतिरिक्त महीना (मलमास या पुरुषोत्तम मास) जोड़ा जाता है। जब चातुर्मास के दौरान एक अतिरिक्त महीना पड़ता है, तो इसकी अवधि बढ़कर 5 महीने हो जाती है। हालांकि, पारंपरिक रूप से इसकी मूल अवधि 4 महीने मानी जाती है, जिसमें अतिरिक्त महीने को 'अतिरिक्त' या 'जोड़ा हुआ' महीना माना जाता है।
मुख्य चार महीनों का महत्व
चातुर्मास के दौरान श्रावण, भाद्रपद, आषव और कार्तिक के चार महीने बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन महीनों में विभिन्न त्योहार और व्रत आते हैं, जिनका विशेष धार्मिक महत्व होता है।
श्रावण मास: भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित।
भाद्रपद मास: जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी जैसे त्योहार।
आश्विन मास: नवरात्रि और दशहरा जैसे त्योहार।
कार्तिक मास: दिवाली और देवउठनी एकादशी जैसे त्योहार।

मौसम और कृषि चक्र
प्राचीन काल से ही चातुर्मास का संबंध वर्षा ऋतु से रहा है। इन चार महीनों में मानसून अपने चरम पर होता है, जिसके कारण यात्रा कठिन हो जाती है और लोग एक ही स्थान पर रहकर ध्यान, पूजा और अध्ययन करते थे। यह कृषि चक्र के लिए भी एक महत्वपूर्ण समय था, जब किसान अपनी फसलों पर ध्यान केंद्रित करते थे। इस ऋतु से जुड़ी गतिविधियाँ केवल इन्हीं चार महीनों तक सीमित रहती थीं।
अधिक मास और उसका प्रभाव
जब अधिक मास चातुर्मास में पड़ता है, तो इसे भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्य (जैसे विवाह, गृह प्रवेश) वर्जित होते हैं, लेकिन धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, दान और तीर्थयात्रा का महत्व बढ़ जाता है। यह अतिरिक्त मास आत्मनिरीक्षण और ध्यान का विशेष अवसर प्रदान करता है। इसलिए, चातुर्मास की अवधि कभी-कभी 5 महीनों तक भी बढ़ जाती है, फिर भी पारंपरिक रूप से इसे 'चार' मास कहा जाता है, क्योंकि इसकी मूल गणना 4 मुख्य चंद्र मासों पर आधारित है। इसलिए, अतिरिक्त मास को एक अतिरिक्त मास माना जाता है।
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