ट्रम्प के टैरिफ से व्यापार के 6 क्षेत्रों में 7 करोड़ नौकरियां खतरे में! सूरत के कपड़ा उद्योग पर भी पड़ेगा इसका असर

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जब अमेरिका ने भारत से आने वाले उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ (सीमा शुल्क) लगाया, तो यह सिर्फ़ कंपनियों या सरकार का मामला नहीं था, इसका सीधा असर आप पर, यानी आम भारतीय उपभोक्ता और मज़दूर वर्ग पर पड़ेगा। विशेष रूप से, भारत के सबसे बड़े कपड़ा उत्पादन केंद्र सूरत जैसे शहरों के लाखों लोगों पर इसका गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा। आइए सरल भाषा में समझते हैं कि किन क्षेत्रों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा और इसका दैनिक जीवन, नौकरियों और कीमतों पर क्या असर पड़ेगा।

अमेरिका भारतीय रेडीमेड गारमेंट्स का सबसे बड़ा खरीदार है। हर साल भारत से अमेरिका को 1.3 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा के कपड़े निर्यात किए जाते हैं। गुजरात का सूरत जो अपने कपड़ा उत्पादन के लिए विश्व प्रसिद्ध है, इस निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दोहरे टैरिफ के बाद, वहां भारतीय कपड़े 50 प्रतिशत महंगे हो जाएंगे, जिसके कारण अमेरिकी कंपनियां बांग्लादेश, वियतनाम और म्यांमार जैसे सस्ते स्रोतों की ओर रुख करेंगी।

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भारत में लाखों मज़दूर इस क्षेत्र में काम करते हैं। अब अगर निर्यात घटेगा, तो स्वाभाविक रूप से ऑर्डर भी कम होंगे। जिसके कारण कारखाने बंद हो जाएंगे। नतीजतन, नौकरियां जाएंगी।

भारतीय वस्त्र मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 4.5 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिधान क्षेत्र से जुड़े हैं।

अमेरिका भारत से सबसे ज़्यादा पॉलिश किए हुए हीरे और आभूषण खरीदता है। 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण, अमेरिकी उपभोक्ता महंगे उत्पाद नहीं खरीदेंगे और ऑर्डर कम हो जाएंगे। सूरत, जयपुर, कोलकाता जैसे शहरों के हज़ारों कारीगर इस उद्योग पर निर्भर हैं। टैरिफ का सबसे ज़्यादा असर छोटे व्यापारियों और हस्तशिल्प कारीगरों पर पड़ेगा।

जीजेईपीसी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत से अमेरिका को रत्न और आभूषणों का सालाना निर्यात 2.5 लाख करोड़ रुपये का है। नुकसान का अंदाज़ा आप खुद लगा सकते हैं। अमेरिका भारत से चमड़े के उत्पादों का एक बड़ा खरीदार है। टैरिफ बढ़ने से वहां भारतीय जूते महंगे हो जाएंगे और उनकी बिक्री कम हो जाएगी।

कानपुर, आगरा, चेन्नई जैसे शहरों की हज़ारों निर्माण इकाइयां प्रभावित होंगी। चमड़ा क्षेत्र में काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की आय प्रभावित होगी। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर ट्रंप ने टैरिफ में कुछ राहत दी है। अब सवाल उठता है कि इस क्षेत्र को क्या राहत मिली है? इसका जवाब यह है कि अमेरिका ने दवाओं और फार्मा एपीआई पर टैरिफ नहीं बढ़ाया है, क्योंकि वह खुद इन पर निर्भर है।लेकिन, अगर दोनों देशों के बीच संबंध और बिगड़ते हैं, तो भविष्य में इस पर भी असर पड़ सकता है।

फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (फार्मेक्सिल) के अनुसार, भारत हर साल अमेरिका को 30 अरब डॉलर (करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये) की दवाइयाँ निर्यात करता है। ऐसे में, अगर इस क्षेत्र पर टैरिफ लगाया गया, तो कितनी अराजकता फैलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।

एप्पल, सैमसंग जैसी कंपनियां भारत में निर्माण करके अमेरिका भेजती हैं। इस क्षेत्र को फिलहाल टैरिफ में छूट मिली हुई है। लेकिन खतरा अभी भी बना हुआ है। अगर टैरिफ नीति और सख्त हुई, तो इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में निवेश रुक सकता है।

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अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क (टैरिफ) में 50 प्रतिशत की वृद्धि का सीधा असर भारतीय कामगारों, उद्योगों और उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। सबसे ज़्यादा असर रोज़गार पर पड़ेगा, खासकर कपड़ा, आभूषण, जूते और एमएसएमई क्षेत्र में। इन क्षेत्रों से जुड़े करोड़ों लोगों की नौकरियाँ खतरे में हैं, क्योंकि अमेरिका इन उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार है।

निर्यात में गिरावट से भारतीय कंपनियों की आय कम होगी, जिसका सीधा असर वेतन, बोनस और नए रोज़गार के अवसरों पर पड़ेगा। कई कंपनियाँ छंटनी का सहारा ले सकती हैं या वेतन में कटौती जैसे कठोर कदम उठा सकती हैं।

इसके साथ ही, मुद्रास्फीति का डर भी मंडरा रहा है। अमेरिका से आने वाले कच्चे माल या तकनीक से बने उत्पादों की इनपुट लागत बढ़ने की संभावना है। इसका बोझ अंततः आम आदमी पर पड़ेगा।

इन टैरिफ से एमएसएमई क्षेत्र पर और दबाव पड़ेगा, जो खर्च और ऋण की चुनौती का सामना कर रहा है। कई छोटे व्यवसायों के लिए निर्यात घाटे का सौदा बन सकता है।

नीतिगत दृष्टि से, भारत के लिए अब चुनौती नए निर्यात बाजार तलाशने की है, उसे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में व्यापार बढ़ाकर इस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करनी होगी। इस पूरी स्थिति ने भारत को अपनी व्यापार रणनीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है।

अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाए जाने के बाद भारत सरकार सक्रिय हो गई है। सबसे पहले, प्रभावित उद्योगों को राहत देने के लिए सब्सिडी, कर छूट और प्रोत्साहन योजनाओं जैसे उपायों पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। विशेष रूप से एमएसएमई और श्रम-प्रधान क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है, जहाँ रोज़गार पर सीधा असर पड़ सकता है।

इसके साथ ही, अमेरिकी प्रशासन के साथ कूटनीतिक बातचीत तेज़ कर दी गई है। भारतीय दूतावास और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी वाशिंगटन स्थित अमेरिकी प्रतिनिधियों के साथ लगातार संपर्क में हैं। इसका उद्देश्य इस टैरिफ विवाद का कूटनीतिक समाधान निकालना है, ताकि द्विपक्षीय व्यापार और संबंधों में और तनाव न आए।

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इसके अलावा, सरकार निर्यातकों को नए बाज़ारों से जोड़ने की रणनीति भी बना रही है। ख़ास तौर पर अफ्रीका, मध्य एशिया और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों को नए व्यावसायिक अवसरों के रूप में देखा जा रहा है। इसके लिए विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय किया जा रहा है ताकि भारतीय उत्पाद इन बाज़ारों में तेज़ी से प्रवेश कर सकें और अमेरिका से हुए नुकसान की भरपाई हो सके।

अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत दोहरे टैरिफ का असर सिर्फ़ व्यापारिक आंकड़ों तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर भारत के कामगारों, कारीगरों, छोटे व्यवसायों और आम खरीदारों तक भी पहुँचेगा। अब समय आ गया है कि भारत विविधीकरण करे, नई साझेदारियां करे और स्थानीय बाजारों पर ध्यान केंद्रित करे, अन्यथा आम भारतीय को वैश्विक टैरिफ राजनीति से सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा।

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