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गुजरात सरकार से नाराज़ और प्रधानमंत्री मोदी से भावनात्मक रूप से जुड़े मतदाता इस दुविधा में हैं कि अब भाजपा का समर्थन करें या नहीं

गुजरात भाजपा का गढ़ रहा है, जिसका श्रेय मुख्यतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान अपनाए गए विकास मॉडल को जाता है। 2001 से 2014 तक नरेंद्र मोदी ने गुजरात में विकास की एक नई दिशा दिखाई। इसी का परिणाम है कि गुजरात की जनता ने भारी संख्या में भाजपा को वोट देकर अपना विश्वास जताया। आज, वर्ष 2025 में, गुजरात में भाजपा की सरकार सत्ता में है। लेकिन हाल के दिनों में भाजपा का संगठन और सरकार की कार्यप्रणाली जनता के सामने कमज़ोर होती दिख रही है, जो भाजपा के लिए खतरे की घंटी की तरह है।
यहां हम गुजरात में भाजपा की वर्तमान स्थिति, लोगों के असंतोष और संगठन की अपेक्षाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे...
2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने जो विकास मॉडल प्रस्तुत किया, वह गुजरात के राजनीतिक इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। गुजरात मॉडल ने औद्योगिक विकास, बुनियादी ढांचे, निवेश और रोज़गार के अवसरों के सृजन के ज़रिए राज्य को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दिलाई। इस दौरान भाजपा का संगठन मज़बूत रहा और कार्यकर्ताओं का जनता से सीधा संपर्क रहा। पेज आधारित व्यवस्था, बूथ स्तर पर संगठन और नेताओं के जनोन्मुखी दृष्टिकोण ने भाजपा को गुजरात में अजेय बना दिया। इसी सफलता के चलते गुजरात के मतदाताओं ने लगातार भाजपा का साथ दिया और 2017 तथा 2022 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को बहुमत मिला। आज, वर्ष 2025 में, गुजरात की राजनीति में भाजपा की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। लोगों के असंतोष के मुख्य कारण संगठन का खराब प्रदर्शन, सरकार की सतही नीतियाँ और स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता हैं।
भाजपा का संगठन, जो कभी गुजरात की जनता से सीधा संवाद करता था, अब केवल कागज़ों और सोशल मीडिया तक सीमित रह गया है। पेज आधारित व्यवस्था, जो भाजपा की सत्ता का आधार थी, अब नाममात्र की रह गई है। कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच समन्वय की कमी, बूथ स्तर पर खराब प्रदर्शन और स्थानीय मुद्दों पर नेताओं की उदासीनता गुजरात के मतदाताओं के असंतोष के मुख्य कारण हैं। उदाहरण के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, नेताओं की निष्क्रियता के कारण कुछ क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने कम समर्थन दिया, जिसका असर गुजरात की कुछ सीटों पर कम मतदान के रूप में देखा गया।

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल एक सौम्य और जनोन्मुखी व्यक्तित्व के धनी हैं, लेकिन उनकी सरकार के मंत्री और विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं। गुजरात में बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और कृषि के मुद्दों पर सरकार के खराब प्रदर्शन ने लोगों में असंतोष को बढ़ा दिया है।
वर्ष 2023-24 के दौरान, गुजरात में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक होने की रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जो युवाओं में निराशा का कारण बनी। इसके अलावा, किसानों की आय बढ़ाने और फसलों का उचित मूल्य सुनिश्चित करने में सरकार की विफलता ने ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष को बढ़ाया है।
आज भी, गुजरात के मतदाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की लोकप्रियता और उनके विकास कार्यों के कारण गुजरात के मतदाता भाजपा का समर्थन करते हैं। लेकिन स्थानीय नेताओं और सरकार के खराब प्रदर्शन ने मतदाताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कई मतदाता अब यह मान रहे हैं कि केवल मोदी के नाम पर वोट देने के बजाय, स्थानीय नेताओं के प्रदर्शन और जनोन्मुखी दृष्टिकोण के आधार पर निर्णय लिए जाने चाहिए। यह बदलता नज़रिया भाजपा के लिए एक चेतावनी है।
कभी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत रहे भाजपा कार्यकर्ता अब संगठन की आंतरिक सक्रियता और नेताओं के रवैये से नाराज़ हो रहे हैं। कई कार्यकर्ताओं को लगता है कि उनके प्रयासों को उचित महत्व नहीं दिया जाता और संगठन में केवल नेताओं के करीबी लोगों को ही प्राथमिकता मिलती है। नतीजतन, कुछ कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए हैं या चुप रहना पसंद कर रहे हैं। यह स्थिति भाजपा संगठन को कमज़ोर कर रही है और इसका असर आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है।

हालांकि गुजरात में भाजपा की स्थिति चिंताजनक है, फिर भी उसके पास जनता का विश्वास जीतने का मौका है। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी भाजपा की सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन स्थानीय स्तर पर नेताओं और संगठन के खराब प्रदर्शन ने लोगों को निराश किया है। आने वाला समय भाजपा के लिए एक कठिन समय होगा जिसमें संगठन और सरकार, दोनों को जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए नए सिरे से प्रयास करने होंगे। अगर भाजपा इन कमज़ोरियों पर काबू पाकर जनोन्मुखी नीतियों और सक्रिय संगठन की रणनीति अपनाती है, तो वह गुजरात में अपनी मज़बूत पकड़ बनाए रख सकती है। अन्यथा, मतदाताओं की बदलती भावनाएँ और अपेक्षाएँ भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती हैं।
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