जब आत्मा ने मुक्ति चाही ....

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जीवन में कब कौन कहा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष  रूप में मिल जाए और जीवन में बदलाव आ जाए पता नहीं चलता। ममता के जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ। चार बहनें, भाई और माता-पिता के साथ जीवनयापन चल रहा था। ममता के बड़ी होने से उसके विवाह की बात होने लगी। वह सुंदर सुशील हिम्मती कार्यकुशल थी। उसका विवाह अच्छे खानदान हुआ। यह बात 1964 की  बात है, जब विवाह के कुछ साल ही बीते थे परिवार में सब कुशल मंगल चल रहा था ससुराल में पति सास ससुर ननद और भी सदस्य सब के साथ अच्छा जीवनयापन हो रहा था। 

बात उस समय की है जब सामाजिक  रीति रिवाज में दशमी एकदशा दिवस के गमगीन माहौल में बैठने के लिए रिश्तेदार के घर जाने का अवसर आया। अपने रिश्तेदार के असामयिक निधन से दुख और सहानुभूति स्वाभाविक थी शाम को घर आ गए । कुछ दिन बीतने लगे। ममता की तबियत खराब होने लगी बुखार कमजोरी होने लगी दवाई करवाई लेकिन कोई असर नही हुआ।  कुछ समय ठीक रहती और बाद में फिर बीमार कभी हंसती और कभी रोने लगती। धीरे-धीरे कुछ असहजता नजर आने लगी घर पर सब चिन्ता करने लगे। तब घर वालों ने बोला कुछ समय के लिए पीहर भेजने की बात की। यही ठीक रहेगा। तब ममता के पिताजी को दूरभाष से ममता के बारे में सब बताया उन्हें भी चिंता हुई आज तक ममता को ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ।

एक दिन पिताजी ममता को लेकर घर आ गए । घर के पास ही शिव मंदिर और सामने पीपल का बड़ा पेड़ और मोहल्ले में नीम के सघन वृक्ष थे।
इस प्रकार अचानक बड़ी बहन को अपने बीच पाकर सब खुश होने लगे। लेकिन सारी बात और असहजता की बात बताई तो परिवार में चिंता होने लगी ये क्या हो गया है इसे। ममता के पिताजी कर्मकांडी पंडित जी थे भजन-पूजन करते थे तो उनको भी  चिंता होने लगी। एक दिन ममता अपने परिवार में बातों ही बातों में कभी खिल खिला कर हंसती कभी जोर से रोती ऐसा होने पर पिताजी ने उसकी कनिष्टिका अंगुली और सिर के बालों को पकड़ कर हनुमान चालीसा का पाठ किए तब तक ठीक रहा। घर वालों को यूं लगा जैसे सब ठीक हो गया, लेकिन चार पांच दिन ठीक रहा लेकिन कुछ दिन बाद फिर से वहीं लक्षण नजर आए तो चिंता और बढ़ गई। समय बीत रहा था एक दिन दोपहर का समय था सब घर पर थे ममता असहज होकर जोर से रोने लगी। तब पिताजी ने बालों को पकड़ थप्पड़ मारे शरीर पर बहुत चोट लगाई तब वो बोलीं क्यों मार रहे हो अपनी बेटी को मत मारो उससे मुझे कुछ नहीं होता। तब उससे पूछा बता कौन है तू और क्यों आई है मेरी बेटी के शरीर में। फिर कुछ नहीं बोला और शांत हो गई।

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पिताजी बहुत चिंता में पड़ गए क्या और कैसे करेंगे इसी उधेबुन में पूरा परिवार रहा और भी कई जतन करने लगे। एक दिन किसी तांत्रिक को घर पर बुलाया इससे पूर्व उसे बुलाने की योजना बनाई । सब बात घर पर की गई।

नियत समय पर तंत्र मंत्र वाले पंडित जी घर पर आए और उनकी गतिविधियों को शुरू की और विधि विधान पूर्ण होने पर बोला अब से कुछ नहीं होगा इसे तब सभी को मन मे प्रसन्नता व्याप्त हो गई। मगर दूसरे ही दिन वहीं हुआ पहले जैसा तो फिर चिंता हुई और बहुत गुस्सा होने पर बहुत मारा तब वो बोलीं क्यों मार रहे  हो इसे तुम उस तांत्रिक को लाए वो मुझे पता चल गया था। तब में बाहर पीपल के पेड़ पर चली गई थी एक दिन माताजी भी उसे डाकोर गोमती नदी में स्नान कराने ले गए कहते है उस नदी में स्नान करने से प्रेतात्मा को मुक्ति मिलती है उस समय भी में किसी और के घर चली गई थी, अब मैं भी परेशान हो गई हूं । इधर उधर भटक कर और अब मैं भी मुक्ति चाहती हूं। ऐसा बोलने पर सब गम्भीर हो गए और ध्यान से सुनने लगे। 

वो बोली सिद्धपुर जाकर मुझे विधि विधान के से मुक्ति दिलाओ।
पिताजी ने कहा - तुम फिर नहीं आई तो।
वो बोली - नहीं ऐसा नहीं होगा में जरूर साथ रहूंगी।
ये सब बात होने पर ममता सो गई थक चुकी थी वो।

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पंडित जी से मिलकर वहां जाने का तय हुआ सारी तैयारी कर ली। पिताजी ने कहा उसके घर के रिश्तेदार भी साथ आवे तो ठीक रहेगा। तब मगर ममता के शरीर से वो बोली कि वे लोग नहीं आएंगे। फिर भी ममता के पिताजी ने सारी बात उन लोगों को बताई, लेकिन जवाब वहीं आया जो ममता ने कहा था।
घर से बाहर निकले तब ममता ने बोला सब ले लिया बराबर?

पिताजी बोले-  हां ले लिया।
ममता  बोली - सिंदूर ओर चुंदड़ी ली ?
पिताजी - नहीं वो तो नहीं लिया।

तब वो बोली कोई बात नहीं जल्दी करो वरना ट्रेन निकल जाएगी चलो अब वो तो वहां भी मिल जाएगा।ऐसा कर सिद्धपुर पहुंचकर विधि-विधान से शांति कर्म किया गया। क्रियाविधि के अन्तिम चरण में वो बोली अब में खश हूं और जा रही हूं, अब ममता को कुछ नहीं होगा । इस तरह उस दिव्य आत्मा ने मुक्ति के लिए ममता को माध्यम बनाया और मुक्ति हो गई। इसके बाद ममता को कभी कुछ नहीं हुआ। वह आज भी स्वस्थ सहज और सामान्य जीवन जी रही है।

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